बुविवि : नैक ग्रेडिंग तैयारियों के साइड इफ़ेक्ट

– तरक्की की ऐसी तैयारी जिसने शिक्षा की गुणवत्ता में की अभूतपूर्व गिरावट

झांसी,19 दिसंबर (हि.स.)। बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा विश्वविद्यालय का चार्ज सम्भालते ही आनन-फ़ानन में नैक ग्रेड कराने का कार्य प्रारम्भ कर दिया था। जिस तरह से बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय की डिग्री को अन्य राज्यों में फर्ज़ी बता दिया जाता है, उसी तरह से नैक मूल्यांकन की भ्रामक तैयारी भी जोरदार तरीके से शुरू की गई। अब नैक ग्रेडिंग के लिए की गई चकाचौंध भरी तैयारी के साइड इफेक्ट सामने भी आ रहे हैं।

विश्वविद्यालय का चार्ज देते हुए प्रदेश के राज्यपाल ने विश्वविद्यालय को विश्वस्तरीय बनाने के लिए कहा होगा मगर कुलपति ने विश्वस्तरीय दिखाने की कोशिश शुरू कर दी। करोड़ों रुपये जो कि गरीब छात्रों से बैंक पेपर, रिजल्ट सुधार, नाम सुधार, इत्यादि नामों से एकत्र किये गए थे, बुन्देलखण्ड के किसानों की खून पसीने की कमाई को नकली रंग रोगन और लिपाई पुताई पर लगा दिया गया। भगवान करे की विश्वविद्यालय को 19 दिसम्बर को डिस्क्लोज रिपोर्ट में नैक ए प्लस प्लस ग्रेडिंग मिल जाए पर किस कीमत पर और क्यों यह एक विचारणीय प्रश्न है।

बताया जा रहा है कि विश्वविद्यालय की जिस प्रगति के आधार पर नैक की ग्रेडिंग की मांग की जा रही है, पिछले दो सालों में उसमें एक अंक की वृद्धि नहीं हुई बल्कि शिक्षा के स्तर में अभूतपूर्व गिरावट हुई है। विश्वविद्यालय के शिक्षकों को दो वर्षों में क्लर्क बना दिया गया। सेल्फ फायनेंस शिक्षकों को पूरा वेतन नहीं दिया जा रहा और विश्वविद्यालय ने करोड़ों रुपये विश्वविद्यालय की सजावट पर खर्च कर दिया।

सूत्रों की मानें तो पिछले दो साल से नैक ग्रेडिंग के नाम पर विश्वविद्यालय में पढ़ाई का माहौल अस्त व्यस्त बना हुआ है। विश्वविद्यालय पढ़ाने के स्थान पर डिग्री बाँटने की संस्था बनकर रह गया है। पिछले दो साल से अस्त व्यस्त परीक्षा कार्यक्रम के कारण इस बार बहु विकल्प प्रश्नपत्र बनाए गए, जिसमें आधे से ज्यादा विद्यार्थी फेल हो रहे थे। डैमेज कंट्रोल के तहत सभी छात्रों को पांच-पांच प्रश्न कैंसलिंग कर रेबड़ी की तरह इनके नम्बर बांट दिए गये और इस तरह विश्वविद्यालय ने छात्रों के असंतोष को दबा दिया लेकिन विश्वविद्यालय की डिग्री की गुणवत्ता का बंटाधार हो गया।

विश्वविद्यालय के अंकों में हुए इस खेल को पढ़ाई करने बाले विद्यार्थियों को भुगतना पड़ा। कुछ विद्यार्थियों के नम्बर तो अधिकतम अंकों से भी ऊपर पहुंच गए और अब उनका कैरियर समाप्त होने की कगार पर है। एक छात्र ने बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय से बीए किया जिसके पर्यावरण पेपर में अधिकतम नम्बर 35 से भी अधिक 36 नम्बर आ गये जबकि एक अन्य छात्र के प्रोबिजनल मार्कशीट में अधिक नम्बर दे दिए गए जबकि वास्तविक अंकतालिका में प्रोविजनल से बहुत कम नम्बर आये। इसके चलते उसका भविष्य अधर में लटका हुआ है। आखिर इस सबका जिम्मेदार कौन है? इसका भी चिंतन विश्वविद्यालय प्रशासन व कुलपति समेत परीक्षा नियंत्रक को जरूर करना चाहिए।

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