अयोध्या, 24 दिसंबर (हि.स.)। अयोध्या उत्सव में पधारे श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चम्पत राय श्रीराम मंदिर निर्माण का वैज्ञानिक आधार समझा गये। उन्होंने इसके निर्माण में रखी जाने वाली एक-एक सावधानियों को बड़ी ही बारीकी से रखा।
बहुभाषी न्यूज एजेंसी हिन्दुस्थान समाचार के तत्वावधान में श्री मणिराम दास छावनी स्थित श्रीराम सत्संग भवन में आयोजित ‘अयोध्या उत्सव’ के दौरान चम्पत राय ने बताया कि यह राष्ट्र का और राष्ट्र के सम्मान का मंदिर है। यह हर भारतीय के सहयोग का प्रतिफल है। इसके निर्माण में सबकी समान हिस्सेदारी है। इसके निर्माण में बहुत सावधानियां रखी गयीं हैं। मंदिर के बेस की जमीन को मजबूती दी गयी है। इसको आर्टिफिशियल रॉक नाम दिया गया है। मंदिर में 21 लाख क्यूबिक पत्थर लगाए जा रहे हैं। इसके निर्माण शिल्प में इसकी आयु का आकलन किया गया है। बहुत ही कम मात्रा में लोहे का उपयोग हुआ है। लोहा पड़ने से इसकी आयु 100 साल कम हो जाती। इसमें प्लेन कंक्रीट है। कंक्रीट पड़ने से इसकी आयु 150 साल से अधिक नहीं हो सकती। जमीन के ऊपर भी कंक्रीट नहीं है। जमीन के ऊपर यदि एक इंच भी कंक्रीट आ गई तो 150 साल के बाद वह कंक्रीट कमजोर हो जाएगी। जमीन के नीचे लोहे का तार भी नहीं हैं। नीचे थोड़ा बहुत कंक्रीट है भी, तो रोलर कंपैक्टेड है। यह दो-चार फीट नहीं बल्कि 14 मीटर है। आर्टिफिशियल रॉक के अंदर सीमेंट भी नहीं है। जहां उपयोग हुआ है वहां सीमेंट की मात्रा बहुत कम है। कहीं-कहीं 02 से 02.50 प्रतिशत का उपयोग हुआ है। पानी न के बराबर है। रोलर कॉम्पेक्शन डेंसिटी मेजरमेंट 98% डेंसिटी होने के बाद सेकंड लेयर और थर्ड लेयर है। इस प्रकार 14 मीटर इतनी गहराई तक एक रॉक डाली गई है। इस प्रकार जमीन को मजबूती दी गयी है। वजह, जमीन में मिट्टी नहीं थी बालू थी। बालू में कोई नया बेस नहीं तैयार हो सकता था।
चम्पत राय ने बताया कि इस कार्य में देश के विभिन्न आईआईटी संस्थानों के अलावा बॉम्बे सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट रुड़की, लार्सन टूब्रो टाटा के सीनियर इंजीनियर, हैदराबाद की नेशनल जिओ रिसर्च इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञ भी इसे तैयार करने में दिन-रात जुट रहे। इन सबके 06 महीने के कलेक्टिव सामूहिक चिंतन के बाद निकले निष्कर्ष के आधार पर निर्माण को गति दिया गया है। इसे आर्टिफिशियल रॉक (चट्टान) के ऊपर मंदिर को खड़ा किया गया है।