पांच साल तक की बच्चियां सुरक्षित नहीं, क्यों खुल रही हैं व्यभिचार की साइट्स ?

डॉ. निवेदिता शर्मा

यह घटना उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की जरूर है पर देश के लिए नई नहीं है। मैं स्वयं कई जगह ऐसी घटनाओं पर संज्ञान लेकर पीड़ित एवं उनके परिवारजन से मिलने गई हूं। देश में आए दिन ऐसी अनेकों वारदात हो रही हैं। इनमें जो समानता है- वह है, विकृत मानसिकता और किसी-किसी घटना में विपरीत लिंग के प्रति संबंध बनाने की जिज्ञासा । कई जानबूझकर इसके शिकार बनाए जा रहे हैं और अनेक बिना जाने कौतुहल वश इसके चंगुल में फंस अपराध कर रहे हैं। प्रश्न है आखिर इसके लिए दोष किसे दिया जाए? क्या परिवार को दोषी माना जाए ? जिसकी परवरिश में कमी है । क्या संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था को दोषी ठहराया जाए ? जो यह नहीं सिखा पा रही कि अपने आयुवर्ग या अन्य भी किसी के साथ कैसे व्यवहार करना है। क्या इसका दोषी संपूर्ण समाज है ? या फिर इस प्रकार के आ रहे मामलों के लिए राज्य एवं केंद्र की सरकार दोषी हैं? जिनका काम कानून व्यवस्था को बनाए रखना है ।

बलिया में घटी घटना में किशोर ने जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली है। उससे यह सहज पता चलता है कि आखिर हमारे बच्चे मोबाइल में गेम खेलने के साथ वह सब भी देख रहे हैं जोकि उन्हें अभी अवस्क रहते हुए नहीं देखना चाहिए, बल्कि मेरा मानना है कि वयस्क होने पर भी इन सब से दूर ही रहना चाहिए। इस 14 साल के किशोर ने बताया कि कैसे पिता के मोबाइल में उसने अश्लील वीडियो देखा, पश्चात उसके मन में गलत ख्याल आने लगे। जब ये घटना घटी तब दोनों ही खेल रहे थे, फिर खेलते-खेलते किशोर उसे एक सुनसान जगह पर ले गया। जहां उसने बच्ची के साथ दुष्कर्म किया। इस दौरान बच्ची की हालत बिगड़ गई, यह देख किशोर बच्ची को उसी हालत में छोड़ भाग गया। खून से लथपथ बच्ची घर पहुंची तो परिजनों के होश उड़ गए। फिर पुलिस की कार्रवाई और आगे किशोर के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 और पोक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया ।

जिस बच्ची के साथ यह घटना घटी वह अभी भी सदमे में है। आगे जो होना है वह इस केस में भी होगा। कानून अपना काम करेगा और जिसे सजा मिलनी है वह भी दी जाएगी । किंतु फिर वही प्रश्न घूम फिरकर सामने आ जाता है कि आखिर भारतीय समाज में इस प्रकार की वारदातें घट क्यों रही हैं ? नाबालिग इसके शिकार हो रहे हैं और हमारी तमाम संवैधानिक एवं सामाजिक संस्थाएं भी मिलकर इन्हें रोकने में नाकामयाब साबित हो रही हैं! भला कौन है इसके पीछे दोषी? तो कहीं न कहीं दोषी तो हम सभी हैं। स्वभाविक तौर पर देखा जाए तो सुधार की यह प्रक्रिया आज परिवार से शुरू करते हुए समाज एवं कानून के स्तर पर सरकारों तक जाने की आवश्यकता है ।

यह हाल में आया आंकड़ा है जिसमें बताया गया कि भारत में 2018 के बाद से पॉर्न वीडियो देखने वालों की संख्या बड़ी तेजी के साथ बढ़ रही है। लगभग 75 फीसदी की इसमें वृद्धि हुई है। इसके साथ ही भारत में मानसिक रोगियों और यौन अपराध के ग्राफ में वृद्धि देखी गई है। हां, केंद्र सरकार के इस दिशा में प्रयास जरूर बीच में कुछ समय के लिए प्रभावी दिखे, जिसमें कि भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई ) की सख्ती और पोर्न वेबसाइट्स को ब्लॉक करने के बाद भारत दुनिया में तीसरे स्थान से 12वें स्थान पर पहुंच गया था । किंतु तथ्य यह है कि आज देश की कुल आबादी में करीब 10 करोड़ की आबादी पॉर्न वेबसाइट के लत में है। 10 करोड़ की आबादी में करीब 3 करोड़ बच्चे और 7 करोड़ वयस्क पॉर्न वेबसाइट की चपेट में हैं। यह सही है कि सरकार ने पोर्नोग्राफी पर प्रतिबंध लगाते हुए एक हजार से अधिक वेबसाइट्स पर प्रतिबन्धित लगाया, लेकिन वह भी कारगर नहीं रहा, क्योंकि कई वेबसाइट अन्य नाम से फिर से इंटरनेट पर आ गईं । सजा के सख्त नियम हैं, फिर भी यह अपराध भारतीय समाज में फलफूल रहा है। समाज एवं देश में व्याप्त होती यह गंदगी रुकने को तैयार नहीं और छोटे बच्चे लगातार इसके शिकार बन रहे हैं।

आज हम 2023 के आखिरी महीने में हैं। इस साल सबसे ज्यादा अश्लील फिल्में किसने देखीं? पोर्नहब के अध्ययन में सामने आया कि फिलीपींस ने । दूसरा स्थान पोलैंड का है। भारत इस सूची में तीसरा है। हालांकि कहने वाले बचाव में यह कह सकते हैं कि भारत, सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के नाते, स्वाभाविक रूप से अन्य कम जनसंख्या वाले देशों की तुलना में उच्चतम अनुपात दिखाता है। लेकिन यहां सोचिए; क्या इस प्रकार बोलकर अपनी कमियों पर पर्दा डालना उचित होगा? इस सूची में अगले स्थान पर वियतनाम, तुर्किये, सऊदी अरब और पाकिस्तान हैं। मोरक्को, ईरान और जर्मनी क्रमशः 8वें, 9वें और 10वें स्थान पर हैं। पॉर्न हब की यह रिपोर्ट चेता रही है कि 11 से 16 साल के 53 फीसदी बच्चे पॉर्न वीडियो देख रहे हैं। इसमें भी चौंका देनेवाली बात यह है कि भारत में पोर्न देखने वाले कुल उपभोक्ताओं में महिलाओं की भागीदारी 30 फीसदी है, जो कि विश्व में सबसे ज्यादा है। यानी कि सिर्फ पुरुष समाज को ही इसके लिए पूरी तरह से दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। महिलाएं स्वयं भी इस अपराध के लिए उनके साथ बराबर की हिस्सेदार हैं।

वास्तव में यह डरावना सच हमें अपने वर्तमान और भविष्य के प्रति सावधान होने के लिए कह रहा है । बाल संरक्षण आयोग एवं अन्य संवैधानिक संस्थाएं अपराध होने पर उसे संज्ञान में लेकर उस पर कार्रवाई के लिए प्रयास कर सकती हैं, किंतु असली कार्य तो अपराध को रोकने का परिवार एवं समाज को ही करना है, जहां से अपराध की शुरूआत होती है। कार्टून, फिल्म और ओटीटी पर वेबसीरीज बनाने वाले लोग इसी समाज से आते हैं जो द्विअर्थी संवाद एवं बहुत कुछ हिंसात्मक, भाषायी रूप से अश्लील एवं घटिया सामग्री नित-रोज परोस रहे हैं। कार्टून के बीच में कंडोम के विज्ञापन आना बता रहा है कि ट्राई या अन्य नियामक संस्था का किसी को कोई डर नहीं है।

मैं फिर कहूंगी कि बच्चे भोले मन के होते हैं, वह जो देखते और समझते हैं आगे वैसा ही व्यवहार करते हैं। ऐसे में सरकार इतना तो कर ही सकती है कि जितनी भी इस तरह की सामग्री इंटरनेट पर सर्च सांकेतिक भाषायी (की) से सर्च होती है, उन सभी पर रोक लगा दे। जो बाजार की जरूरत के नाम पर ओटीटी या इसी प्रकार के अन्य प्लेटफॉर्म पर अश्लीलता परोस रहे हैं, वह इसका निर्माण बंद कर दें और अभिभावक होने के नाते हम भले ही कितने ही व्यस्त हों, लेकिन यह जरूर देखें कि हमारे बच्चे मोबाइल और किसी भी स्क्रीन पर टाइम बिताते वक्त आखिर देख क्या रहे हैं। समय रहते यदि उन्हें वहीं रोक दिया जाए और सही-गलत के संबंध में तत्काल समझाया जाए तो ही एक अच्छे भविष्य की उम्मीद है, अन्यथा तो बलिया जिले जैसी घटनाएं देश भर में आगे सर्वत्र घटती रहेंगी और हम सभी उन घटी घटनाओं के पीछे का सच जानने एवं उन पर कार्रवाई करने में व्यस्त बने रहेंगे।

( लेखिका, मप्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य हैं। )

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