फाजिल्का मंडी में बवाल: किसानों ने कमेटी दफ्तर को किया ताला बंद, बाहर धरना

फाजिल्का की अनाज मंडी में किसानों ने खरीद प्रक्रिया में धांधली के आरोप लगाते हुए भारतीय किसान यूनियन एकता सिद्धपुर से जुड़े सदस्य एवं स्थानीय किसान मार्केट कमेटी के कार्यालय के गेट को बंद कर दिया है। इस दौरान किसानों ने कमेटी के सचिव एवं चेयरमैन सहित अन्य स्टाफ को भीतर बंद कर दिया और बाहर धरना शुरू कर दिया है। किसानों का कहना है कि वे कई बार अपनी समस्याओं का समाधान करवाने के लिए मांग कर चुके हैं, किंतु उनकी आवाज़ को अनसुना किया जा रहा है।

भाकियू एकता सिद्धपुर के जिला अध्यक्ष प्रगट सिंह के अनुसार, किसान इस समस्या को लेकर बेहद चिंतित हैं और यह महसूस कर रहे हैं कि उनकी मेहनत का फल उन्हें सही मूल्य पर नहीं मिल रहा है। वे बताते हैं कि अनाज मंडियों में उन्हें धान की फसल के लिए उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। किसानों का आरोप है कि उनकी फसल पर कटौती की जा रही है, जिससे उन्हें सरकारी मूल्य से कम दाम पर अपनी उपज बेचना पड़ रहा है। इस संदर्भ में कई दफा शिकायतों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं होने के कारण किसानों ने यह कठोर कदम उठाने का फैसला किया है।

किसानों का कहना है कि उन्हें एक क्विंटल धान की फसल पर 200 रुपए तक की कटौती की जा रही है, जो कि उनके लिए एक बड़ा नुकसान है। वे इस स्थिति में सुधार की मांग कर रहे हैं और इसका हल्ला तभी उठाने का निश्चय किया है जब तक उन्हें न्याय नहीं मिल जाता। इस आंदोलन के पीछे उनकी एकजुटता और दृढ़ता दिखाई दे रही है, लेकिन इसके परिणामस्वरूप अधिकारियों की समस्या भी बढ़ गई है, जो इस स्थिति को सुलझाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

इस मामले की जानकारी मिलने के बाद मौके पर पहुँची पुलिस ने बताया कि अधिकारियों को किसानों द्वारा अंदर बंद कर दिया गया है। पुलिस के अधिकारी ओम प्रकाश का कहना है कि वे स्थिति का जायजा लेने आए हैं और किसान नेताओं के साथ बातचीत करने का प्रयास कर रहे हैं। फिलहाल, उन्हें कुछ किसानों को अंदर भेजने की इजाजत दी गई है ताकि बातचीत को आगे बढ़ाया जा सके और यह मामला सुलझाया जा सके। इस बीच, प्रशासन पूरी कोशिश कर रहा है कि स्थिति को बिगड़ने से रोका जाए और दोनों पक्षों के बीच एक संतोषजनक समाधान निकाला जा सके।

यह घटनाक्रम रेखांकित करता है कि कैसे किसानों के मुद्दे स्थानीय प्रशासन और बाजार तंत्र में अव्यवस्था का एक ज्वलंत उदाहरण पेश कर रहे हैं। ऐसे मामलों में किसान और सरकार के बीच संवाद की आवश्यकता है ताकि उनके स्वार्थों की रक्षा की जा सके और उन्हें अपनी मेहनत का उचित मूल्य मिल सके।