चंडीगढ़ की जिला अदालत ने एक नाबालिग लड़की से शारीरिक छेड़छाड़ के मामले में गिरफ्तार आरोपी की जमानत याचिका को खारिज कर दिया है। यह घटना सारंगपुर थाना क्षेत्र की है, जहां लगभग दो महीने पहले 15 वर्षीय बच्ची के साथ छेड़छाड़ करने के आरोप में आरोपी को गिरफ्तार किया गया था। अदालत में पेश की गई जमानत याचिका में आरोपी ने दावा किया कि नाबालिग पीड़िता उसके धर्म भाई की बेटी है और उसके पिता के साथ पैसे का लेन-देन चल रहा था। इसके साथ ही, आरोपी ने यह भी कहा कि पीड़िता के पिता ने जानबूझकर उसे झूठे मामलों में फंसाने के लिए यह शिकायत की थी।
सरकारी वकील ने इस जमानत याचिका के खिलाफ मजबूती से तर्क पेश किए। उन्होंने कहा कि यदि आरोपी को जमानत दी जाती है, तो इससे मामले की जांच प्रभावित हो सकती है, क्योंकि अभी भी जांच जारी है और आरोप पत्र पेश नहीं किया गया है। उन्हें यह चिंता थी कि जमानत मिलने की स्थिति में आरोपी सबूतों से छेड़छाड़ कर सकता है या गवाहों पर दबाव डालकर मामले को प्रभावित कर सकता है। सरकारी पक्ष ने जमानत याचिका की गंभीरता को अदालत के समक्ष रखते हुए आरोपी की रिहाई का विरोध किया।
सुनवाई के दौरान, अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलों को ध्यान से सुना और मौके की गंभीरता का आकलन किया। जमानत याचिका को खारिज करते हुए, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस मामले की गंभीरता को देखते हुए आरोपी को जमानत देने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि पुलिस को मामले की आगे की जांच में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए ताकि सभी तथ्यों और परिस्थितियों को सही तरीके से सामने लाया जा सके।
इस फैसले ने न केवल पीड़िता को न्याय दिलाने की उम्मीद को बढ़ाया है, बल्कि समाज में ऐसे मामलों के प्रति जागरूकता भी फैलाने का कार्य किया है। न्यायालय का यह निर्णय इस बात का संकेत है कि बच्चों के खिलाफ हो रहे अपराधों के प्रति कोई नरमी बरती नहीं जाएगी और ऐसे मामले में कानून पूरी तत्परता से कार्य करेगा। नाबालिगों के प्रति सुरक्षा सुनिश्चित करना हर नागरिक की जिम्मेदारी है और इस प्रकार के निर्णय समाज में सुरक्षा और न्याय के प्रति विश्वास को और मजबूत करते हैं।
आगे की प्रक्रिया के संदर्भ में, पुलिस को निर्देश दिया गया है कि वे मामले की गहराई से जांच करें और सभी जरूरी कदम उठाएं, ताकि दोषियों को न्याय के कटघरे में लाया जा सके। इस घटना ने यह भी दर्शाया है कि किसी भी आरोपी के खिलाफ जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं लिया जाएगा जब तक कि सभी तथ्यों और सबूतों की समीक्षा ना कर ली जाए। इस तरह की सावधानी से यह सुनिश्चित होगा कि प्राथमिकता हमेशा पीड़िता के अधिकारों और न्याय की हो।