जिलाधिकारी ने गंगा समिति की बैठक में योजनाओं की डीपीआर तैयार के दिए निर्देश
उत्तरकाशी, 20 नवंबर (हि.स.)।
जिलाधिकारी डॉ. मेहरबान सिंह बिष्ट ने गंगा एवं यमुना नदी को निर्मल बनाए रखने के लिए जिले में सीवेज प्रबंधन के लिए प्रस्तावित योजनाओं के लिए डीपीआर तैयार करने के निर्देश दिए हैं।
जिलाधिकारी ने जिला गंगा समिति की बैठक में गंगा एवं यमुना नदी को स्वच्छ बनाए रखने के लिए डीपीआर तैयार करने का कार्य तत्परता से संपन्न करने के साथ ही गंगोत्री धाम में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के संचालन में तय मानकों का पूरी तरह से अनुपालन सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं।
उन्होंने नगरीय क्षेत्रों में कूड़े के समुचित प्रबंधन व लीगेसी कूड़े के निस्तारण पर विशेष ध्यान देने की हिदायत देते हुए कहा कि इस संबंध में हुई प्रगति की नियमित समीक्षा की जाएगी।
जिलाधिकारी डॉ. श्री बिष्ट ने जिले में गंगा व यमुना नदी के तटवर्ती नगरों, कस्बों व यात्रा पड़ावों में सीवेज प्रबंधन के लिए प्रस्तावित योजनाओं पर संबंधित विभागों व निकायों द्वारा अब तक की गई कार्रवाई की विस्तार से समीक्षा की। उन्होंने जल संस्थान के अधिकारियों से कहा कि गंगोत्री के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का सही तरीके से संचालन कर निर्धारित मानकों का अनिवार्यरूप से अनुपालन किया जाय। उन्होंने उत्तरकाशी नगर के मौजूदा दो एमएलडी के एसटीपी की क्षमता विस्तार और जोशियाड़ा क्षेत्र स्थित वार्ड नंबर आठ एवं नाै के लिए मार्ग निर्माण सहित ड्रेनेज व सीवेज प्रबंधन की योजना की डीपीआर जल्द तैयार करने हेतु नगर पालिका, सिंचाई विभाग और गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के अधिकारियों को निर्देशित किया। गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई ऋषिकेश के परियोजना प्रबंधक ने बताया कि इस परियोजना की डीपीआर तैयार करने के लिए 56 लाख रुपये की लागत का प्रस्ताव स्वीकृति के लिए भेजा जा चुका है। सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता ने बताया कि प्रस्तावित ड्रेनेज परियोजना की डीपीआर बनाने के लिए धनराशि स्वीकृत हो चुकी है और कसलटेंट की नियुक्ति कर ली गई है। जिलाधिकारी ने चिन्यालीसौड़ में एफएसटीपी के लिए उप जिलाधिकारी को भूमि चिह्नित करने के निर्देश देने के साथ ही संबंधित विभागों व निकायों को जिले में विभिन्न जगहों पर प्रस्तावित सीवेज व सेप्टेज ट्रीटमेंट प्लांट्स के डीपीआर बनाने के कार्य प्राथमिकता से पूरा करने को कहा।
जिलाधिकारी ने जिले के सभी नगर निकायों को पुराने कूड़े के निस्तारण आवश्यक मशीनों, उपकरणों, टैंकर व वाहनों की खरीद करने के निर्देश दिए।
बैठक में प्रभागीय वनाधिकारी डीपी बलूनी, अपर जिलाधिकारी देवानंद शर्मा, उप जिलाधिकारी मुकेश चंद रमोला, जिला गंगा समिति के सदस्य लोकेन्द्र बिष्ट, अशोक सेमवाल, जय प्रकाश, अपर मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. बीएस पांगती, अधिशासी अभियंता सिंचाई केएस रावत, अधिशासी अभियंता जल संस्थान एलसी रमोला, अधिशासी अभियंता जल निगम मधुकांत कोटियाल, स्वजल के पर्यावरण विशेषज्ञ प्रताप मटूड़ा सहित विभिन्न विभागों व नगर निकायों के अधिकारीगण उपस्थित रहे।
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गंगोत्री से गंगा में गिर रहा सीवर, एनजीटी ने मुख्य सचिव को दिए जांच के निर्देश
उत्तरकाशी। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी)
ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव को गंगोत्री से
गंगा और उसकी सहायक नदियों में सीवर और अन्य गंदगी पर लगाम लगाने के निर्देश दिये थे। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने गंगा नदी के मुल उद्गम स्थल गंगोत्री में सीवर जनित फीकल कालीफार्म की मात्रा मानक से अधिक पाए जाने पर कड़ी नाराजगी जताई थी। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव ने प्रकरण में उत्तराखंड के मुख्य सचिव को जांच कराने के निर्देश दिए हैं। एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ के समक्ष की गई सुनवाई में याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने बताया कि गंगोत्री में राज्य की रिपोर्ट के अनुसार गंगोत्री में एक मिलियन लीटर प्रति दिन (एमएलडी) क्षमता वाले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में फीकल कालीफार्म की मात्रा मानक से अधिक पाई गई है। यह मात्रा एकत्र नमूने में 540/100 मिलीलीटर एमपीएन (मोस्ट प्रोबबल नंबर) पाई गई है। फीकल कालीफार्म (एफसी) का स्तर मनुष्यों और जानवरों के मलमूत्र से निकलने वाले सूक्ष्म जीवों से प्रदूषण दर्शाता है। न्यायाधिकरण को यह भी बताया गया कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के जल गुणवत्ता (आउटडोर बाथ) के मानदंडों के अनुसार के लिए अधिकतम 500/100 मिली होनी चाहिए।
मामले को गंभीरता से लेते हुए उत्तराखंड की मुख्य सचिव ने उचित जांच करने के निर्देश जारी कर दिए हैं।
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53 में से 50 एसटीपी क्रियाशील, 48 की क्षमता कम
एनजीटी ने एसटीपी के मानदंडों और कार्यक्षमता के अनुपालन के बारे में सीपीसीबी की रिपोर्ट पर भी ध्यान दिया और कहा कि 53 चालू एसटीपी में से केवल 50 कार्यात्मक थे, जबकि 48 की क्षमता कम है। यह बायलाजिकल आक्सीजन डिमांड (बीओडी) हटाने की पूरी तरह सक्षम नहीं हैं। पीठ ने सीपीसीबी रिपोर्ट के साथ राज्य की रिपोर्ट की तुलना करते हुए कहा कि उत्तराखंड की नवीनतम रिपोर्ट में किए गए खुलासे संदिग्ध हैं।
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एसटीपी में क्षमता उपयोग और डिजाइन क्षमता में असंतुलन
एनजीटी ने उत्तरकाशी, पौड़ी, चमोली, राजधानी देहरादून के साथ ही हरिद्वार और
टिहरी के एसटीपी का जिक्र करते हुए कहा कि इनमें शोधन क्षमता में असमानता है। कहीं क्षमता से कम सीवर शोधित किया जा रहा है और कहीं क्षमता से अधिक सीवर पहुंच रहा है।
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