हिमालयन इकोज साहित्य एवं कला महोत्सव के नौवें संस्करण का शुभारंभ
नैनीताल, 16 नवंबर (हि.स.)। ‘हिमालयन इकोज’ के तत्वावधान में सरोवरनगरी में ‘साहित्य एवं कला महोत्सव’ के नौवें संस्करण का आयोजन नैनीताल के ऐतिहासिक एबॉट्सफोर्ड हाउस में शनिवार को शुरू हो गया। तीन वर्षों के अंतराल के बाद भौतिक रूप से आयोजित महोत्सव का उद्देश्य हिमालयी संस्कृति, साहित्य और पर्यावरण पर सार्थक संवाद करना और हिमालय से जुड़े साहित्य, कविता, और शोध को प्रोत्साहित करना बताया गया है।
उल्लेखनीय है कि इस महोत्सव की शुरुआत लेखक व सामाजिक उद्यमी जाह्नवी प्रसाद ने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की सह-निर्देशक नमिता गोखले के मार्गदर्शन में की थी। महोत्सव के मुख्य विषय ‘सीएएलएम-काम’ यानी क्रिएटिविटी यानी रचनाशीलता, आर्ट यानी कला, लिटरेचर यानी साहित्य और माउंटेन्स यानी पहाड़ हैं। महोत्सव का शुभारंभ संस्थापक जाह्नवी प्रसाद और महोत्सव की सलाहकार नमिता गोखले के स्वागत भाषण से हुआ। इसके पश्चात भूटानी संगीतकार पेमा सैमद्रुप और उनकी बेटी कर्मा सोनम डेमाथ ने पारंपरिक भूटानी संगीत और नृत्य की प्रस्तुति दी। इस दौरान इतिहासकार डॉ. शेखर पाठक की नई पुस्तक ‘गंगोत्री से कालिंदीखाल और बद्रीनाथ की यात्रा’ का विमोचन किय गयाा। इस दौरान उन्होंने पद्मश्री अनूप साह के साथ हिमालय के भौगोलिक बदलावों और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर संवाद किया। इसके अतिरिक्त डॉ. पाठक ने सुविख्यात लेखक सुजीव शाक्य के साथ ‘सततता बनाम विकास’ विषय पर चर्चा करते हुए हिमालयी दुविधा पर विचार रखे। डॉ. पाठक ने कहा कि ‘हिमालयन इकोज’ मानव, साहित्य और प्रकृति को जोड़ने का प्रयास करता है, और इन्हें अलग नहीं करना चाहिए। रोहिणी राणा ने रक्षंदा जलिल के साथ बातचीत में नेपाली व्यंजनों और उनके क्षेत्रीय विविधताओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि नेपाली भोजन का आधार मौसमी सब्जियां और स्थानीय मसाले जैसे तिमूर और जम्बू हैं। आगे ‘मानवीय कथाएं और आख्यान’ सत्र में नमिता गोखले और प्रिया कपूर ने साहित्य के बदलते स्वरूप और पाठकों की रुचि पर चर्चा की। दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अनिश दयाल ने अपनी कविता पुस्तक और जंगली गांव में शुरू की गई पुस्तकालय पहल पर बात की। दिन का समापन पक्षी विशेषज्ञ जेनिफर नंदी और पर्यटन विशेषज्ञ एम्मा हॉर्न की चर्चा से हुआ। जेनिफर ने पूर्वोत्तर भारत और ब्रह्मपुत्र के प्राकृतिक सौंदर्य पर जोर दिया। महोत्सव में स्थानीय कलाकारों और स्वयं सेवी संस्थाओं ने हस्तशिल्प प्रदर्शित किए। विद्यालयों के विद्यार्थियों ने हिमालय के प्रति अपनी चिंताओं और उत्सुकता से लेखकों के साथ संवाद किया।
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