मुख्य संरक्षक राज्यपाल समेत प्रदेश सरकार को धोखे में रख फायदा उठाता आ रहा यूपीसीए
– जब बोर्ड नहीं है कम्पनी एक्ट में पंजीकृत तो प्रदेश संघ क्यों ?
-पूर्व क्रिकेटर और हज कमेटी के चेयरमैन ने दोबारा वीडियो संदेश जारी कर उठाए सवाल
कानपुर, 12 नवंबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश क्रिकेट टीम को पूर्व में अपनी सेवाएं दे चुके मध्यम तेज गति के गेंदबाज और हज कमेटी के चेयरमैन मोहसिन रजा ने मंगलवार को दोबारा एक वीडियो जारी कर प्रदेश क्रिकेट संघ की कलई खोलने का काम कर दिया है। उन्होंने जारी वीडियो में साफ तौर पर कहा है कि वर्तमान में चलायमान उत्तर प्रदेश क्रिकेट संघ (यूपीसीए) अब पूरी तरह से खेल विरोधी नीतियों को अपना रहा है जिससे प्रदेश के क्रिकेटरों का भविष्य अन्धकार में डूबता जा रहा है। बाहर के प्रदेश से आ रहे खिलाड़ियों को टीम में पैसों के बदले खिलाया जा रहा है।
उन्होंने वीडियो में कहा है कि साल 2005 से कम्पनी एक्ट में पंजीकृत यूपीसीए ने अपना कार्य शुरू किया है। उसने अपने ही सालों से रहे मुख्य संरक्षक राज्यपाल समेत प्रदेश सरकार को भी अंधेरे में रख फायदा उठाता आ रहा है। यूपीसीए पैसे कमाने की धुन में इतना व्यस्त है कि उसने प्रदेश के राज्यपाल से मैचों को शुरु करवाने की परम्परा को ही धता बता दिया है। प्रदेश संघ को कटघरे में खड़ा करते हुए उन्होंने कहा कि इसके अधिकारी बीसीसीआई के बनाए नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं और लोढा समिति की सिफारिशों को भी मानने से परहेज कर रहे हैं। राज्य सरकारों की ओर से वह फायदा तो उठाते आ रहे हैं लेकिन शुल्क अदाएगी के नाम पर कटौती करवाने के लिए खेल प्रोत्साहन की बात करने पर अमादा हो जाते हैं। उन्होंने प्रदेश संघ की साल 1955-56 सोसायटी में पंजीकृत रसीद का भी हवाला देते हुए कहा कि साल 2005 में कांग्रेसी नेता ने सुबह आवेदन किया और शाम को ही पद और रुतबे का रौब दिखाते हुए प्रदेश क्रिकेट संघ को कम्पनी एक्ट में पंजीकरण करवाने की प्रक्रिया को भी पूरी कर लिया। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि इससे पूर्व अभी तक किसी क्रिकेटर और उनके अभिवावकों ने विरोध शासन स्तर पर नहीं करवाया। अब शासन में यह मामला आया तो इसकी गम्भीरता को देखते हुए सूबे के मुखिया को अवगत करवाया गया। मोहसिन रजा ने बोर्ड के अधिकारियों से भी यूपीसीए की करतूतों की शिकायत दर्ज करवायी है।
उन्होंने कहा कि जब भारतीय क्रिकेट कन्ट्रोल बोर्ड तमिलनाडु में सोसायटी एक्ट में पंजीकृत है तो वह कम्पनी एक्ट में पंजीकृत प्रदेश संघ को मान्यता देकर कैसे संबद्ध कर सकता है। ये पूर्व में सोसायटी एक्ट में प्रमाणित प्रदेश संघ को ही मान्यता प्रदान कर चुका है और 2005 से ही अपनी मर्जी से चलाता आ रहा है। पूर्व क्रिकेटर के उठाए गए इस कदम से यूपीसीए के पदाधिकारियों के बीच थोडा डर बनेगा और सब कुछ पारदर्शी हो सकेगा, इसकी उम्मीद बढ़ गयी है।
उल्लेखनीय है कि पूर्व मन्त्री ने संघ के पूर्व सचिव युद्धवीर सिंह, निदेशक रियासत अली, चयनकर्ता अरविन्द कपूर, ललित वर्मा, महाप्रबन्धक रीता डे, सीईओ अंकित चटर्जी,पूर्व सीओओ दीपक शर्मा, आलाकमान के पीए अकरम सैफी और उसके एजेन्ट अनुराग मिश्रा के खिलाफ पुलिस की ओर से पेश की गयी मुकदमों की फाइल का भी हवाला देकर सबको सोचने पर विवश कर दिया है। यही नहीं चयनकर्ता का कार्य देख रहे उपाध्यक्ष को कटघरे में खडा करने का काम किया है। पूर्व मन्त्री के आरोपों में इतना दम दिखायी दे रहा है कि संघ अभी तक उसको नकार नहीं पा रहा है। पूर्व मन्त्री ने सूबे के मुखिया से शिकायत कर इस मामले को और भी बढा दिया है। अब देखना यह होगा कि मुख्यमन्त्री मामले की जांच के लिए किस प्रकार की कमेटी का गठन करतें हैं।
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