चंडीगढ़: नाबालिग ने जन्मी बच्ची, हिमाचल निवासी आरोपी मंदिर में शादी का दावा

चंडीगढ़ के सेक्टर 32 स्थित अस्पताल में एक 16 वर्षीय नाबालिग लड़की ने एक स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया है। इस मामले में पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए आरोपी के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया है। मनीमाजरा थाना पुलिस को सूचना प्राप्त हुई कि एक नाबालिग लड़की गर्भवती है, जिसके बाद पुलिस ने तुरंत अस्पताल जाकर स्थिति का जायजा लिया। यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने आरोपित दीपक को हिरासत में लिया, जो चंडीगढ़ के मनीमाजरा क्षेत्र में एक किराए के मकान में रह रहा था।

आरोपी दीपक वेटर के काम से जुड़ा हुआ है और वह हिमाचल प्रदेश के रोडू का निवासी है। पूछताछ के दौरान दीपक ने बताया कि उसने नाबालिग लड़की के साथ हिमाचल में एक मंदिर में विवाह किया था। बताया जाता है कि लड़की भी उसी क्षेत्र में स्थित है, जिससे यह स्थिति और जटिल बन गई है। पुलिस ने जब अस्पताल पहुँचकर मामले की पड़ताल की, तब दीपक ने यह स्वीकार किया कि वह लड़की को अस्पताल लाया था, जहां उसे पेट में दर्द की शिकायत थी।

दिलचस्प बात यह है कि यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले, सात साल पूर्व चंडीगढ़ में एक 10 साल की बच्ची ने भी अपने मामा द्वारा यौन शोषण के बाद बच्ची को जन्म दिया था। उस मामले में भी बच्ची को पेट में दर्द की शिकायत पर अस्पताल ले जाया गया, जहां चिकित्सकों ने पाया कि वह तीन महीने की गर्भवती थी। जब उसकी काउंसलिंग की गई तो यह जानकारी सामने आई कि उसके मामा ने उसके साथ अमानवीय व्यवहार किया था, जिसके बाद पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार किया था।

इन घटनाओं ने समाज के एक संवेदनशील मुद्दे को उजागर किया है। नाबालिग लड़कियों के खिलाफ बढ़ते यौन उत्पीड़न के मामलों ने सुरक्षा तंत्र पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। यह घटनाएँ हमारे समाज में ऐसे मुद्दों के प्रति जागरूकता लाने की आवश्यकता को भी इंगित करती हैं। ऐसे मामलों में पुलिस की तुरंत कार्रवाई और उचित कानूनी प्रक्रिया का होना बेहद महत्वपूर्ण है ताकि पीड़ितों को न्याय मिल सके और भविष्य में ऐसे मामलों से निपटा जा सके।

यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि समाज के सभी तबके इस दिशा में आगे आएं और नाबालिगों के सुरक्षित भविष्य के लिए काम करें। लड़कियों की शिक्षा, उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता, और समाज में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करने के लिए सभी को एक साथ मिलकर प्रयास करना होगा। सामाजिक संगठनों, शिक्षकों और परिवारों को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर लड़की को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया जा सके और उसके खिलाफ हुई किसी भी तरह की हिंसा को तत्काल रोका जा सके।