भारतीय संस्कृति एवं परम्परा का ध्वजवाहक है महाकुम्भ : नन्दी

भारतीय संस्कृति एवं परम्परा का ध्वजवाहक है महाकुम्भ : नन्दी

–महाकुम्भ सामाजिक समरसता का भी सबसे उत्कृष्ट दर्पण–भारतीय संस्कृति में कुम्भ पर्व की परम्परा और प्रयाग कुम्भ के सम्बंध में चर्चा

प्रयागराज, 21 दिसम्बर (हि.स.)। मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, तेलियरगंज में बतौर मुख्य अतिथि औद्योगिक विकास मंत्री नन्द गोपाल गुप्ता नन्दी ने कहा कि महाकुम्भ का आयोजन भारतीय संस्कृति एवं परम्परा का ध्वजवाहक है। जहां सर्वे भवन्तु सुखिनः की वैश्विक भावना साकार रूप लेती है।

सम्राट हर्षवर्धन शोध संस्थान एवं मौलाना अबुल कलाम आजाद इंस्टीट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज के संयुक्त तत्वावधान में भारतीय संस्कृति में कुम्भ पर्व की परम्परा और प्रयाग कुम्भ के सम्बंध में शनिवार को अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। जिसमें पूरी दुनिया को सनातन भारतीय संस्कृति से साक्षात्कार कराने वाले एवं अध्यात्म, संस्कृति और आस्था के महासंगम महाकुम्भ पर विस्तृत चर्चा हुई।

संगोष्ठी में मंत्री नन्दी ने आगे कहा कि गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है-माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथ पतिहिं आव सब कोई। प्रयागराज की पावन धरा सदियों से आध्यात्मिक उत्थान एवं मोक्ष की प्राप्ति के लिए आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं का बाहें फैलाकर आतिथ्य करती आयी है। महाकुम्भ का आयोजन भारतीय सनातन संस्कृति के साथ ही प्रयागराज के विशिष्ट महत्त्व को भी रेखांकित करता है। इसी महत्त्व के कारण संगमनगरी को तीर्थराज की महिमा प्राप्त है।

नन्दी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी प्रेरक मार्गदर्शन और कर्मयोगी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में हमारी डबल इंजन की सरकार ने भारत की गौरवशाली परम्परा और विरासत को सहेजने का काम किया है। महाकुम्भ-2025 में विश्व भर से आने वाले अतिथि और श्रद्धालु अपने साथ जीवन भर की स्मृतियां लेकर लौटेंगे। वे हर क्षण भारतीय संस्कृति की दिव्यता, भव्यता और गौरव का प्रत्यक्ष अनुभव करेंगे। भारत विविधताओं से भरा देश है। अनेकता में भी एकता और बंधुत्व हमारी पहचान है। अलग-अलग भौगोलिक परिवेश में रहने वाले लोग, अलग अलग भाषाएं बोलने वाले लोग, अलग अलग रहन सहन और पहनावे वाले लोग महाकुम्भ में आकर भारतीय संस्कृति के एक ही रंग में रंग जाते हैं, यहां पर सभी का संगम हो जाता है।

उन्होंने कहा कि महाकुम्भ सामाजिक समरसता का भी सबसे उत्कृष्ट दर्पण है। बिना किसी भेदभाव के, बिना किसी अमीर-गरीब अंतर के, बिना किसी की पहचान पूछे करोड़ों लोग पतित पावनी माँ गंगा यमुना सरस्वती की त्रिवेणी में डुबकी लगाते हैं। जो लोग वोटबैंक के लालच में समाज को बांटना चाहते हैं उन्हें यह देखना चाहिए की केवल भारतीय धर्म और संस्कृति में ही ऐसे सूत्र हैं जो इस तरह का आदर्श प्रस्तुत करते हैं।

इस अवसर पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सूर्य प्रकाश केसरवानी, प्रोफेसर डीपी तिवारी कुलपति जय मीनेश आदिवासी विश्वविद्यालय कोटा राजस्थान, डॉ. रीता बहुगुणा जोशी, डॉ. स्वरूप प्रसाद घोष निदेशक मौलाना अबुल कलाम आजाद एशियायी अध्ययन संस्थान कोलकाता, अनिल कुमार गुप्ता अन्नू भैया अध्यक्ष सम्राट हर्षवर्धन शोध संस्थान, डॉ. प्रदीप कुमार केसरवानी निदेशक हर्षवर्धन शोध संस्थान, रौनक गुप्ता प्रभारी आयोजन समिति एवं अन्य लोग उपस्थित रहे।

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