DSP की फाइल लोक सेवा आयोग भेजी, हाईकोर्ट ने मान सरकार पर साधा निशाना!

पंजाब सरकार ने गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई के पुलिस हिरासत में दिए गए इंटरव्यू के मामले में लोक सेवा आयोग को एक रिपोर्ट सौंपी है, जिसे विशेष रूप से स्वीकार किया गया है। इस रिपोर्ट में पंजाब पुलिस के डीएसपी गुरशेर सिंह की बर्खास्तगी की मांग की गई है और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की अपेक्षा की गई है। राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय में एक हलफनामा दायर कर जानकारी दी थी कि गुरशेर सिंह को बर्खास्त करने की प्रक्रियाएँ शुरू कर दी गई हैं। इसके अलावा, हाईकोर्ट ने निचले स्तर के अधिकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई पर भी सवाल उठाया, जिससे स्पष्ट हुआ कि राज्य सरकार पर उच्च अधिकारियों के खिलाफ भी आवश्यक कार्रवाई करने का दबाव है।

इस मामले की गंभीरता उस समय और बढ़ गई जब हाईकोर्ट ने निचले अधिकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई को उचित मानने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने पूछा कि उच्च अधिकारियों के खिलाफ क्यों कोई कदम नहीं उठाया गया और सिर्फ नीचे के स्तर के अधिकारियों को ही क्यों निशाना बनाया गया। यह मामला तब सामने आया जब लॉरेंस बिश्नोई का इंटरव्यू एक निजी चैनल पर प्रसारित हुआ, जबकि वह सीआईए खरड़ की हिरासत में था। इस दौरान डीएसपी गुरशेर सिंह पूरी स्थिति की जांच कर रहे थे। लॉरेंस ने इस इंटरव्यू में सिद्धू मूसेवाला के मर्डर की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली थी और कहा था कि मूसेवाला गैंगवार में शामिल हो रहा था, जो उसकी गिरती छवि के लिए खतरनाक था।

लॉरेंस बिश्नोई ने पहले इंटरव्यू में नैतिकताओं की सीमा लांघते हुए कहा था कि मूसेवाला का मर्डर उसके कॉलेज के मित्र विक्की मिड्‌डूखेड़ा के कत्ल के लिए प्रतिशोध था। यह पहली बार था जब उसने इस तरह का खुलासा किया था। उसके बाद, उसने अपने दूसरे इंटरव्यू में जेल के भीतर से बात करने का ठोस सबूत भी पेश किया। लॉरेंस ने आरोप लगाया कि उसे बैरक में रहने दिया जाता है, लेकिन उसके पास मोबाइल फोन आ जाता है और वह जेल के गार्डों की लापरवाही का फायदा उठाकर रात को कॉल करता है।

उन्होंने यह भी जानकारी दी कि जेल के बाहर से मोबाइल फोन फेंके जाते हैं, जिन्हें कभी-कभी जेल स्टाफ पकड़ लेता है, लेकिन अनेक बार वो फोन उसकी पहुंच में भी आ जाते हैं। इस पूरे मामले से यह स्पष्ट हो रहा है कि पंजाब में गैंगस्टरों के सक्रियता का स्तर क्या है और पुलिस महकमे की कार्यप्रणाली पर कई प्रश्न उठ रहे हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए आवश्यक कदम उठाने की जरूरत है, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके। उच्च न्यायालय का निर्देश और सरकार की कार्रवाई इस दिशा में एक सकारात्मक संकेत हो सकता है।