आचार्य मिथिलेशनंदिनीशरण ने कुम्भ पर्व पर हादसा टालने के लिए सोशल मीडिया पर साझा किये विचार

आचार्य मिथिलेशनंदिनीशरण ने कुम्भ पर्व पर हादसा टालने के लिए सोशल मीडिया पर साझा किये विचार

महाकुम्भ नगर, 29 जनवरी (हि.स.)। महाकुम्भ में मौनी अमावस्या के अवसर पर संगम नोज पर हुए दुखद हादसे की सूचना पर अयोध्या के हनुमत निवास मंदिर के महंत आचार्य मिथिलेशनंदिनीशरण ने भविष्य में ऐसे दुखद हादसे न हो इस​की बाबत अहम सुझाव सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर शेयर किये हैं।

आचार्य मिथिलेशनंदिनीशरण ने अपने एक्स एकाउंट में लिखा है, तीर्थराज प्रयाग में मौनी अमावस्या के पर्व पर एक अवांछित प्रसंग सामने आया है। भगदड़ में श्रद्धालुओं के हताहत होने की सूचना है। दुर्घटनायें दुःखद होती हैं। व्यवस्थाओं के लिये वे सदा एक शिक्षापाठ की भांति होती हैं, जिनसे उनका परिष्कार होता है। सुधार की ही दृष्टि से उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने की बात भी उचित है। तथापि, बहुत कुछ ठीक कर लेने पर भी दुर्घटना की सम्भावना को निरस्त नहीं किया जा सकता।

उन्होंने पोस्ट में आगे लिखा है कि, एक परिमित देशकाल में अपरिमित जनसंख्या का एकत्र होना व्यवस्थाओं की निर्धारित योजना को बहुधा निरस्त कर देता है। प्रचार-लिप्सा, वैशिष्ट्य का पाखण्ड, कुछ लोगों को आभासी महानता के छद्म से अनुशासन के ऊपर कर देना, समय पर आवश्यक एवं तात्कालिक निर्णय लेने में प्रशासन की अक्षमता, सड़क पर पैदल चल रहे विराट् लोक की भावना को सम्मान न देते हुये शासकीय योजनाओं को अंतिम मानने की जड़ता तथा सहज पारम्परिक श्रद्धाभाव के आगे जाकर मोबाइल-कल्चर से अत्यधिक चंचल हुये श्रद्धालु-वर्ग के कारण ऐसी परिस्थितियां सामने आती हैं। वो आगे लिखते हैं, यद्यपि कोई अन्तिम और अभेद्य योजना महाकुम्भ के स्नान को लेकर हो सकती यह कहना कठिन है… फिर भी कुछ विनम्र आग्रह यहां इस त्रासद प्रसंग को देखते हुये हैं—

—संगम-नोज का प्रचार शासकीय स्तर पर बन्द हो और सम्पूर्ण मेला क्षेत्र में उपलब्ध स्नान घाटों को समान महत्त्व दिया जाये।

—मेला क्षेत्र के जिन सेक्टर में स्नान घाट उपलब्ध हैं वहां के लोग अन्यत्र स्नान करने न जा सकें, ऐसी योजना हो।

—सभी अखाड़ों के पूज्य आचार्य महामण्डलेश्वर स्वयं साक्षात् तीर्थरूप हैं। वे कृपापूर्वक सभी विशिष्ट पर्वों पर अपने पारम्परिक शाही व अमृत स्नान बन्द कर दें।

—अखाड़ों के शाही व अमृत स्नान मुख्य पर्वों से भिन्न, उनके द्वारा निर्धारित अन्य तिथियों पर हों, तब सामान्य स्नान वर्जित रहे।

—मुख्य स्नान-पर्व पर किसी प्रजाति के वीआईपी को कोई व्यवस्था न दी जाये। जो सामान्य जन के बीच स्वेच्छा से पैदल चलकर जा सकें, वही सम्मिलित हों।

—मुख्य स्नान पर्व पर सभी सम्भव मार्ग सामान्य श्रद्धालुओं के लिये खुले रहें, और भटकाने वाला डायवर्जन न हो।

—सभी पाण्टून पुलों पर अतिरिक्त ‘इमरजेन्सी लेन’ का निर्माण हो, जिनसे आकस्मिक अवसर पर विकल्प रहें।

—मेले की भीड़ अथवा किसी भी विषय को लेकर भ्रम और मिथ्या प्रचार करने वाले व्यक्तिगत अथवा संस्थागत मीडिया माध्यम प्रतिबंधित किये जायें।

उन्होंने अपनी पोस्ट में श्रद्धालुओं से भी आग्रह किया है कि आप अपने व्यवहार की समीक्षा करें। अधेड़ उम्र के बाद जिन्होंने मोबाइल देखा है, ऐसे वरिष्ठ स्त्री-पुरुष सेल्फी लेने को गिरे जाते हैं। चलते-चलते वीडिओ कॉल पर बात करते हैं। स्नान के फोटो वीडिओ लेने हेतु असहज स्थितियां उत्पन्न करते हैं। अत्यधिक भीड़ के बीच खरीदारी करने और अनावश्यक गतिविधियों में लगकर अपने तीर्थभाव को भूल जाते हैं। इनसे बचने की आवश्यकता है।