लुधियाना के हलका पश्चिम से आम आदमी पार्टी के विधायक गुरप्रीत बस्सी गोगी के निधन के बाद यह विधानसभा सीट खाली हो गई है। चुनाव आयोग ने संकेत दिए हैं कि जल्दी ही इस सीट पर उपचुनाव कराए जाएंगे। गोगी का निधन राजनीति में हलचल पैदा कर चुका है, और अब सभी राजनीतिक दल सक्रिय हो गए हैं। विभिन्न पार्टियों के नेता अब अपने-अपने दावों को पार्टी हाईकमान को भेजने में जुट गए हैं। इस चुनाव में जो भी उम्मीदवार विजयी होगा, उसे केवल डेढ़ साल का कार्यकाल मिलेगा, फिर भी सभी दल इस सीट पर जीत के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं।
गुरप्रीत बस्सी ने 2022 विधानसभा चुनावों में 40,443 वोटों के साथ जीत हासिल की थी, जबकि कांग्रेस के भारत भूषण आशु ने 32,931 वोट हासिल करके दूसरा स्थान प्राप्त किया था। बीजेपी के विक्रम सिंह सिद्धू ने भी 28,107 वोटों के साथ अच्छी प्रतिस्पर्धा दिखाई। इन आंकड़ों के मद्देनज़र, यह सीट ज्यादातर आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और बीजेपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होने की संभावना है। कांग्रेस में, भारत भूषण आशु को सबसे मजबूत उम्मीदवार माना जा रहा है, लेकिन वह गुटबाजी और मौजूदा सरकार के खिलाफ चुनाव लड़ने से बचने की कोशिश कर रहे हैं।
इस बीच, आम आदमी पार्टी भी इस सीट के लिए अपने संभावित उम्मीदवारों की सूची पर विचार कर रही है। दविंदर सिंह घुमन और तनवीर सिंह धालीवाल जैसे नामों पर चर्चा हो रही है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि पार्टी किसे टिकट देगी। इसके अलावा, गोगी की पत्नी सुखचैन बस्सी को पार्टी टिकट देकर संवेदनाएं व्यक्त कर सकती है। बीजेपी में भी कई दावेदार मैदान में हैं, जिनमें एडवोकेट विक्रम सिंह सिद्धू, काका सूद और राशि अग्रवाल शामिल हैं। अगर कांग्रेस से सुखचैन और ममता आशु चुनाव लडेंगी, तो बीजेपी राशि अग्रवाल पर भरोसा कर सकती है।
बीजेपी के लिए, एडवोकेट विक्रम सिंह सिद्धू का नाम सबसे ऊपर है, जिन्होंने 2022 में अच्छा प्रदर्शन किया था। लेकिन हालिया राजनीतिक संरचनाओं के चलते, सिद्धू को इस बार अपने ही पार्टी के लोगों की खिलाफत का सामना करना पड़ सकता है। नगर निगम चुनाव में उनकी अनुपस्थिति को लेकर सवाल उठ रहे हैं, जिससे उनकी स्थिति कमजोर होती दिख रही है। शिरोमणि अकाली दल ने भी इस सीट के लिए कई दावेदार उतारे हैं, जिनमें कारोबारी कमल चेटली और पूर्व मंत्री महेशइंद्र सिंह ग्रेवाल के बेटे शामिल हैं।
इन सभी समीकरणों के बीच, राजनीति के लिए तैयार सभी पार्टियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे अपने-अपने सबसे मजबूत और सक्षम उम्मीदवार को मैदान में उतारेंगे। इस उपचुनाव का परिणाम न केवल इस सीट के लिए महत्वपूर्ण होगा, बल्कि पंजाब की राजनीतिक तस्वीर पर भी गहरा प्रभाव डालेगा। उपचुनाव के नतीजों से यह भी स्पष्ट होगा कि जिन दलों ने सही रणनीति बनाई है, वे भविष्य में अपने राजनीतिक प्रभाव को बरकरार रखने में सफल रहेंगे।