सीएम निवास पर SKM और KMM का घेराव: मंत्रियों-विधायकों के खिलाफ भी बड़ा प्रदर्शन!

पंजाब और हरियाणा के शंभू तथा खनौरी सीमा पर किसानों के आंदोलन का सफर अब एक नए चरण में प्रवेश कर रहा है। किसान मजदूर मोर्चा (KMM) और संयुक्त किसान मोर्चा (नॉन पॉलिटिकल) ने आज मुख्यमंत्री भगवंत मान और अन्य कैबिनेट मंत्रियों तथा विधायकों के घरों का घेराव करने का निर्णय लिया है। यह घोषणा KMM के संयोजक सरवण सिंह पंधेर ने कल दोपहर की। इसके बाद, एसकेएम नॉन पॉलिटिकल के साथ एक ऑनलाइन बैठक आयोजित की गई जिसमें उन्होंने इस आंदोलन में साथ चलने की सहमति जताई।

हाल ही में, 19 मार्च को पंजाब पुलिस ने किसान नेताओं को हिरासत में लेकर शंभू और खनौरी बॉर्डर को खाली कराया था। इसके परिणामस्वरूप, दोनों सीमाओं पर वाहनों की आवाजाही को फिर से शुरू किया गया। सिख किसान नेता सरवण सिंह पंधेर को पुलिस के द्वारा रिहा कर दिया गया है, जबकि अनशन कर रहे नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल को पटियाला के अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

किसान आंदोलन का यह क्रम 13 महीने पहले शुरू हुआ था, जब किसानों ने अपनी मांगों को लेकर दिल्ली कूच का ऐलान किया। 13 फरवरी 2024 को किसानों के दिल्ली जाने की कोशिशों को हरियाणा पुलिस ने शंभू और खनौरी बॉर्डर पर बैरिकेडिंग करके रोका था। किसानों ने चार बार दिल्ली कूच करने का प्रयास किया, लेकिन हर बार पुलिस ने आंसू गैस का उपयोग कर उन्हें पीछे हटने पर मजबूर किया। इस संघर्ष के दौरान, 21 फरवरी को युवा किसान शुभकरण सिंह की मृत्यु हो गई, जिससे स्थिति और भी गंभीर हो गई।

किसान नेताओं द्वारा किए गए अनशन और वार्ताओं के तहत 26 नवंबर 2024 को जगजीत सिंह डल्लेवाल ने खनौरी बॉर्डर पर आमरण अनशन शुरू किया। इस दौरान केंद्र सरकार और किसान नेताओं के बीच 7 बार वार्ता हुई, लेकिन किसी भी वार्ता का कोई ठोस समाधान नहीं निकला। अंततः 19 मार्च 2025 को, पुलिस ने किसानों के प्रतिनिधियों को हिरासत में लेकर दोनों बॉर्डरों को फिर से खाली कर दिया। इसके बाद, 20 और 21 मार्च को दोनों सीमा पर वाहनों की आवाजाही एक बार फिर चालू कर दी गई।

अब किसान संगठनों ने एकता प्रदर्शित करते हुए पुन: सरकार के खिलाफ कदम उठाने का निर्णय लिया है, जिसका उद्देश्य उनके अधिकारों और मांगों को लेकर सरकार का ध्यान आकर्षित करना है। इस प्रदर्शन के माध्यम से किसान नेता अपनी आवाज को और प्रभावी ढंग से उठाने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि उनकी समस्याओं का समाधान हो सके। किसान आंदोलन का यह नया अध्याय यह स्पष्ट करता है कि आंदोलनकारी अभी भी अपने मुद्दों के प्रति जागरूक और सक्रिय हैं।