तेलुगु फिल्म के सुपरस्टार विजय देवरकोंडा ने हाल ही में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के वर्तमान हालात पर अपनी स्पष्ट राय रखी है। जहां बॉलीवुड की फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर उम्मीद के अनुरूप प्रदर्शन नहीं किया है, वहीं दक्षिण भारतीय सिनेमा का प्रभुत्व बढ़ता जा रहा है। विजय का मानना है कि यह केवल एक चक्र है, और हिंदी सिनेमा भी जल्द ही नई ऊर्जा के साथ वापसी करेगा। उन्होंने न्यूज9 से बातचीत में बताया, “दक्षिण फिल्म इंडस्ट्री इस वक्त अपने उत्कृष्ट दौर में है, लेकिन यह केवल एक चक्र है। एक समय था जब आप हमें नहीं जानते थे, और भारतीय सिनेमा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई थी। अब साउथ सिनेमा का समय है, लेकिन 5 या 10 साल बाद कुछ नया देखने को मिलेगा।”
विजय ने यह भी बताया कि वे विश्वास करते हैं कि हिंदी सिनेमा जल्द ही नये चरण में प्रवेश करेगा, जिसमें नये फिल्म निर्माताओं की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। उन्होंने कहा, “इस बदलाव से नई दृष्टि वाले फिल्मकार सामने आएंगे, जो हिंदी सिनेमा को फिर से मजबूत करेंगे। मुझे लगता है कि कई नए निर्देशकों का उदय मुंबई के बाहर से होगा, जो अलग तरह की कहानियों के साथ काम करेंगे। उनकी कहानी कहने की शैली भी दक्षिण सिनेमा से भिन्न होगी।”
विजय ने “बाहुबली” का हवाला देते हुए बताया कि कैसे एस. एस. राजामौली ने इस फिल्म के जरिए तेलुगु सिनेमा को वैश्विक पहचान दिलाई। उन्होंने कहा, “तेलुगु सिनेमा ने बहुत संघर्ष के बाद बड़े ऑडियंस तक पहुंच बनाई। जब एस. एस. राजामौली ने बाहुबली बनाई, तब उन्होंने ऐसे दो अभिनेताओं पर भरोसा किया जिनका नाम हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में शायद ही कोई जानता था। अगर यह फिल्म सफल नहीं होती, तो अनेक करियर समाप्त हो सकते थे। यह सभी के लिए एक बड़ा जोखिम था। मगर ऐसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। मैं मानता हूं कि हिंदी सिनेमा भी अपनी राह ढूंढ लेगा। यह सब जीवन का एक हिस्सा है।”
विजय ने यह भी स्पष्ट किया कि बदलाव का यह दौर न केवल सिनेमा के लिए आवश्यक है, बल्कि निरंतरता और विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, “हर इंडस्ट्री में उतार-चढ़ाव आते हैं। वर्तमान में साउथ सिनेमा की हर कोई सराहना कर रहा है, लेकिन यह हमेशा युहीं नहीं रहेगा। हिंदी सिनेमा के दर्शक भी विभिन्नता की तलाश में हैं, और जब वे नए और रोमांचक कंटेंट को देखेंगे, तो निश्चित तौर पर वे फिर से हिंदी फिल्मों की ओर लौटेंगे।”
इस प्रकार, विजय देवरकोंडा का यह वक्तव्य दर्शाता है कि सिनेमा की दुनिया में परिवर्तन अनिवार्य है और भारतीय सिनेमा की कहानी हमेशा अनिश्चितता और संभावनाओं से भरी होती है।