रणदीप हुड्डा ने ठुकराया ‘रंग दे बसंती’, अब पछतावा: जाट अकड़ बनी वजह!

रणदीप हुड्डा फिलहाल अपनी नई फिल्म “जाट” को लेकर सुर्खियों में हैं, जिसमें उन्होंने एक विलेन का भूमिका निभाई है। इस फिल्म में उनके प्रदर्शन को दर्शकों द्वारा काफी सराहा जा रहा है। इसी बीच, रणदीप ने अपने एक हालिया इंटरव्यू में खुलासा किया कि अपने करियर के दौरान उन्होंने कुछ ऐसे फैसले लिए हैं जिनका उन्हें आज भी पछतावा है। उनका मानना है कि शायद ये निर्णय उनकी करियर की प्रगति में बाधा बने और उन्हें उन ऊंचाइयों तक नहीं पहुंचने दिया, जहां वह पहुंच सकते थे।

शुभांकर मिश्रा के पॉडकास्ट में रणदीप से पूछा गया कि क्या उन्होंने कभी घमंड के कारण कोई फिल्में खोई हैं। इस पर उन्होंने बताया कि उन्होंने “रंग दे बसंती” जैसी चर्चित फिल्म को ठुकरा दिया था। उन्होंने कहा कि उन्हें इस फिल्म में भगत सिंह का किरदार निभाने का प्रस्ताव मिला था और उन्होंने ऑडिशन भी दिया था, जिसे राकेश ओमप्रकाश मेहरा सहित निर्माताओं ने पसंद किया था। रणदीप ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि निर्देशक कई बार उनके पास आए और फिल्म के लिए उन्हें प्रेरित करते रहे। लेकिन उस समय वह फिल्म इंडस्ट्री में सिर्फ दो लोगों को ही जानते थे, एक उनकी गर्लफ्रेंड और दूसरे राम गोपाल वर्मा।

रणदीप ने उल्लेख किया कि उनकी गर्लफ्रेंड को इस फिल्म में कोई दिलचस्पी नहीं थी और उसने उन्हें सलाह दी कि इतना छोटा रोल नहीं लेना चाहिए। वहीं, राम गोपाल वर्मा ने सुझाव दिया कि वह ‘D’ में लीड रोल के लिए विचार कर रहे हैं, लेकिन रणदीप को यह बात पसंद नहीं आई। उन्होंने कहा, “मैं आमिर खान के पीछे क्यों खड़ा होऊंगा?” इसी प्रतिक्रिया ने उन्हें इस फिल्म से दूर कर दिया। उन्होंने इस संदर्भ में यह भी बताया कि कुछ इसी तरह के कारणों से उन्होंने फरहान अख्तर की “रॉक ऑन” भी छोड़ दी थी।

रणदीप ने आगे कहा कि उन्होंने हमेशा उन फिल्म निर्माताओं के साथ काम किया जो परंपरागत रूप से इंडस्ट्री के अंदरूनी हलकों से अलग थे। यही वजह है कि उनकी ग्रोथ सीमित रही। वह मानते हैं कि वह अपनी एक्टिंग पर बहुत भरोसा कर रहे थे और यह सोचते थे कि यही सबसे महत्वपूर्ण है, लेकिन अब उन्हें समझ में आया है कि केवल अभिनय ही सबकुछ नहीं है। रणदीप ने इस बात को स्वीकार किया कि यदि वह कुछ फैसलों पर पुनर्विचार करते, तो आज उनका करियर एक अलग दिशा में हो सकता था।

उनकी इस बातचीत से यह स्पष्ट होता है कि कभी-कभी स्वीकार्यता और स्वीकार किए गए प्रस्तावों पर विचार करना भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है जितना कि अपने कौशल पर भरोसा करना। रणदीप हुड्डा का यह अनुभव निश्चित रूप से उन नवोदित कलाकारों के लिए एक सीख है जो अपने करियर के प्रारंभिक चरण में हैं।