कश्मीर के खूबसूरत पहलगाम हिल स्टेशन पर एक दुखद घटना घटित हुई, जहां शुभम द्विवेदी नामक युवक को आतंकियों ने गोली मार दी। यह घटना 22 अप्रैल को हुई, जब शुभम और उनकी पत्नी ऐशन्या बायसरन घाटी में घुड़सवारी करने गए थे। इस दौरान उनके परिवार के अन्य सदस्य पहलगाम के एक होटल में ठहरे हुए थे। शुभम का परिवार पहले बायसरन घाटी की सैर करने का प्लान बना रहा था, लेकिन उनके बहनोई शुभम दुबे ने गहरी खाई देखकर जाने से मना कर दिया। इसी बीच, शुभम के माता-पिता और बहन ने भी घाटी में जाने से इनकार कर दिया। हालांकि, शुभम ने अपने परिवार को मनाने का प्रयास किया और अंततः वह अकेले ही ऐशन्या के साथ घाटी की ओर बढ़ गए।
घाटी में पहुंचने के बाद शुभम और ऐशन्या ने एक रेस्टोरेंट में ब्रेकफास्ट करने का निर्णय लिया। उस समय, वे वादियों का आनंद लेते हुए अपनी मैगी का इंतज़ार कर रहे थे। तभी, दो व्यक्ति जो सेना की वर्दी में थे, उनके पास आए और उनसे सवाल पूछने लगे। शुभम ने यह सोचकर उन्हें कानपुर बताया कि शायद वे उनकी पहचान मांगने आए हैं, लेकिन उनकी अगली बात ने सब कुछ बदल दिया। आतंकियों ने शुभम से पूछा कि क्या वे मुस्लिम हैं और इसके बाद शुभम को गोली मार दी। ऐशन्या इस घटना को देख कर बेहोश हो गईं, जबकि आतंकियों ने वापस लौटते समय उसे छोड़ दिया और उसे चेतावनी दी कि यह बात अपनी सरकार को बताएं।
इस घटना के संबंध में शुभम के पिता संजय द्विवेदी ने कहा कि वे 22 अप्रैल की सुबह पहलगाम पहुंचे थे, लेकिन परिवार के कुछ सदस्यों को अस्वस्थता महसूस होने के कारण वे ठहरने का निर्णय लिया। शुभम ने बायसरन घाटी का दौरा करने का निर्णय लिया, लेकिन परिवार के अन्य सदस्य घबराए हुए थे। लेकन, शुभम का स्वभाव साहसिक था, और उन्होंने ऐशन्या के साथ घाटी की ओर बढ़ने का निर्णय लिया। संजय ने बताया कि उन्हें शाम को 6:30 बजे अपनी बेटे शुभम के साथ हुई घटना के बारे में पता चला, जिससे पूरे परिवार में असहनीय दुःख का माहौल बन गया।
शुभम की चाची अंजना द्विवेदी ने बताया कि शुभम घुमक्कड़ी का शौकीन था और वह पहले से कई देशों की यात्रा कर चुका था। उसकी उत्साह के चलते ही परिवार ने कश्मीर जाने का निर्णय लिया था। अंजना कहती हैं कि यदि शुभम का पूरा परिवार घाटी में उनके साथ होता, तो स्थिति और भी भयावह हो सकती थी। शुभम की शादी 12 फरवरी को हुई थी और यह कश्मीर में परिवार की पहली यात्रा थी। उन घटनाओं ने शुभम के परिवार को तोड़कर रख दिया है और उनके अंतिम संस्कार को राजकीय सम्मान मिला।
कश्मीर में इस तरह की घटनाएं न केवल देश में आतंकवाद के खतरे को दर्शाती हैं, बल्कि यह उन परिवारों के लिए भी एक गहरा आघात है जिनका कोई सदस्य ऐसे हमलों का शिकार होता है। शुभम का परिवार अब उसके बिना जीने की कोशिश कर रहा है, जबकि उसकी पत्नी ऐशन्या के लिए यह बेहद कठिन समय है। वह हर पल अपने पति को याद कर रही हैं और उनके साथ बिताए हर क्षण को संजोए हुए हैं।
इस घटना ने न केवल शुभम के परिवार को ही नहीं, बल्कि पूरे समाज को गहरी चिंता में डाल दिया है, यह सोचते हुए कि क्या इस तरह की हिंसा का अंत कभी होगा?