रामलीला के मंचन की शुरुआत विश्वामित्र ऋषि के भव्य प्रवेश से हुई। श्वेत वस्त्र, कमंडल और जटाजूट धारण किए हुए विश्वामित्र मंच पर जैसे ही प्रकट हुए, पूरे पंडाल में श्रद्धा का वातावरण छा गया। उन्होंने राजा दशरथ को प्रणाम कर अपने यज्ञ की रक्षा के लिए राम और लक्ष्मण को मांगने का आग्रह किया। मंच पर दशरथ की भूमिका निभा रहे कलाकार ने भावपूर्ण स्वर में कहा – हे मुनिवर ! राम तो अभी बालक हैं, वे कैसे राक्षसों का सामना करेंगे? मैं स्वयं आपके यज्ञ की रक्षा करूंगा।
इस पर विश्वामित्र का चेहरा गंभीर हो उठा। उन्होंने धर्म और कर्तव्य की महत्ता समझाते हुए कहा कि राम ही इस कार्य के योग्य हैं। जब दशरथ टालमटोल करते रहे, तब गुरु वशिष्ठ का प्रवेश हुआ। वशिष्ठ ने शांत भाव से दशरथ को समझाया – राजन, आप यह अवसर अपने पुत्रों को क्यों वंचित कर रहे हैं। यही समय है जब वे धर्म के मार्ग पर आगे बढ़ेंगे और उनके पराक्रम से संपूर्ण आर्यावर्त लाभान्वित होगा।
गंभीर और भावुक संवाद के बीच अंततः दशरथ सहमत हो गए और राम-लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ भेज दिया।
इसके बाद मंचन का दृश्य बदलकर वनभूमि का रूप धारण कर गया। वृक्ष, पशु-पक्षियों की ध्वनियां और मृदंग-नगाड़ों की गूंज ने पूरा वातावरण जीवंत कर दिया। तभी मंच पर ताड़का का प्रवेश हुआ। राक्षसी रूप में कलाकार ने विकराल स्वर निकालते ही दर्शकों में सिहरन पैदा कर दी। राम और लक्ष्मण के बीच हुए संवाद – भैया, यह तो महा राक्षसी है, इसे और विलंब नहीं देना चाहिए। – के साथ ही युद्ध का दृश्य प्रारंभ हुआ।
धनुष की टंकार, तीर चलने की ध्वनि और मंच सज्जा ने माहौल को रोमांचक बना दिया। जब राम ने अपने बाण से ताड़का का वध किया, पूरा मैदान तालियों और जयघोष से गूंज उठा। छोटे-छोटे बच्चे जय श्रीराम के नारे लगाते हुए खुशी से उछल पड़े।
मंचन में समिति के पदाधिकारी और सदस्य बड़ी संख्या में मौजूद रहे। मंचन की कलात्मकता, पात्रों की सशक्त संवाद-अभिव्यक्ति और ताड़का वध का दृश्य दर्शकों की स्मृति में लंबे समय तक अंकित रहेगा।