प्रशासन की ओर से बच्चों को स्कूल ड्रेस, किताबें और अध्ययन सामग्री प्रदान की गई। पहाड़ी कोरवा बस्तियों में अक्सर देखा जाता था कि बच्चे अधिकारियों को देखकर दूर भागते थे, लेकिन इस बार माहौल बदला नज़र आया। प्रशासनिक टीमों ने लगातार सर्वे कर अभिभावकों को समझाया और शिक्षा का महत्व बताया। परिणामस्वरूप, माता-पिता अपने बच्चों को विद्यालय भेजने के लिए राज़ी हुए।
नामांकन की इस प्रक्रिया में राखि, कुमारी, सुमारी, रवीना और सुमंती को कक्षा चौथी में प्रवेश दिलाया गया। अध्ययन सामग्री पाकर बच्चों के चेहरे पर उत्साह और मुस्कान साफ झलक रही थी। उन्होंने वादा किया कि अब वे स्कूल छोड़कर कभी नहीं जाएंगे और नियमित रूप से पढ़ाई करेंगे।
कलेक्टर विलास भोसकर ने जिला शिक्षा अधिकारी दिनेश झा को निर्देशित किया है कि वे इस अभियान की सतत मॉनिटरिंग करें और अभिभावकों को लगातार प्रेरित करें ताकि बच्चे नियमित रूप से स्कूल आते रहें।
यह पहल न केवल शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने की दिशा में मजबूत कदम है, बल्कि विशेषकर पिछड़ी जनजातियों के बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की नींव रखने वाला प्रयास भी साबित होगी।