कंकाल काली मंदिर में उमड़े श्रद्धालु, दर्शन मात्र से मिलता है भय-बाधा से मुक्ति

स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार करीब नौ दशक पहले अकोढ़ी गांव के पूरब स्थित सदकू मजरे में एक किसान खेत में हल जोत रहा था। अचानक उसका हल पत्थर से टकराया और मिट्टी हटाने पर काले पत्थर की अलौकिक प्रतिमा प्रकट हुई। तत्पश्चात मंत्रोच्चार के बीच प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा की गई और तब से यहां मां काली के इस स्वरूप की पूजा होती आ रही है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, त्रेता युग में विंध्य क्षेत्र की पंपापुर नगरी में चंड-मुंड नामक राक्षसों का अत्याचार चरम पर था। देवताओं की पुकार सुनकर मां काली ने इन दैत्यों का संहार किया। कहा जाता है कि युद्ध के दौरान उनके अत्यधिक क्रोध से मुख की मुद्रा कंकालवत हो गई, जिसके चलते उनका नाम कंकाल काली पड़ा।

भक्त तीर्थराज सिंह ने बताया कि चैत्र नवरात्र पर हर वर्ष कोलकाता से समूह में भक्त आकर यहां विशेष पूजा-अर्चना और आरती करते हैं। श्रद्धालुओं में यह भी विश्वास है कि कंकाल काली के दर्शन मात्र से जीवन की सभी बाधाओं और संकटों से मुक्ति मिल जाती है।