रामलीला के मंच पर जैसे ही भगवान परशुराम का क्रोधित स्वर गूंजा— “किसने शिव धनुष का अपमान किया है? कौन है वह अभिमानी जो मेरे प्रभु के धनुष को तोड़ने का दुस्साहस कर बैठा।— तो दर्शकों की सांसें थम गईं। वहीं, भगवान श्रीराम ने विनम्रता से उत्तर दिया— भगवन्! यह सब आपकी आज्ञा से ही संपन्न हुआ है। यदि इसमें कोई अपराध है, तो दंड देने योग्य मैं ही हूं। इस पर लक्ष्मण ने परशुराम को प्रत्युत्तर देते हुए कहा— हे परशुराम! यदि धनुष तोड़ने का सामर्थ्य कोई दिखा सका है, तो इसमें दोष कैसा? यह तो पराक्रम और सत्य का प्रमाण है।
राम-लक्ष्मण और परशुराम के बीच हुआ यह संवाद अत्यंत रोचक और भावपूर्ण रहा। लक्ष्मण की तीखी वाणी पर जहां दर्शकों ने उत्साह जताया, वहीं श्रीराम के विनम्र उत्तर ने सबका मन मोह लिया। रामलीला समिति के अध्यक्ष मनोज कुमार मिश्रा ने बताया कि इस मंचन का उद्देश्य प्रभु श्रीराम और भगवान परशुराम दोनों के प्रति सम्मान और समर्पण भाव को समाज के सामने रखना है। उन्होंने कहा कि दोनों ही महापुरुषों ने अपने युग में समाज के उत्थान और कल्याण के लिए अद्वितीय कार्य किए।
पूरे आयोजन के दौरान श्रद्धालु भावविभोर होकर रामलीला के दृश्यों का आनंद लेते रहे। अब श्रद्धालुओं की नजर आगामी कड़ी पर है, जिसमें राम-सीता विवाह और जनकपुरी का भव्य उत्सव मंचित किया जाएगा।