वाराणसी, 16 अक्टूबर । भारत में हृदयगति रुकने (कार्डियक अरेस्ट) के करीब 70 प्रतिशत मामले अस्पताल से बाहर होते हैं, जहां समय पर चिकित्सकीय सहायता मिलना अक्सर संभव नहीं हो पाता। ऐसे में यदि आसपास मौजूद कोई व्यक्ति समय पर सीपीआर (कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन) दे दे, तो यह जीवन रक्षक साबित हो सकता है। इसी उद्देश्य से स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा 13 से 17 अक्टूबर तक देशभर में सीपीआर जागरूकता सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है।
इस क्रम में गुरुवार को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में जागरूकता अभियान के तहत कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें प्रतिभागियों ने सीपीआर के प्रति जागरूकता फैलाने और दूसरों को भी इसे सिखाने की शपथ ली।
कार्यक्रम का आयोजन फार्माकोलॉजी विभाग, आईएमएस-बीएचयू के प्रोफेसर डॉ. किरण गिरी के निर्देशन और डॉ. वेद प्रकाश, डिप्टी कोऑर्डिनेटर, पीवीपीआई एवं प्रोफेसर, फार्माकोलॉजी विभाग के मार्गदर्शन में किया गया। यह पहल प्रतिकूल दवा प्रतिक्रिया निगरानी केंद्र की देखरेख में संचालित हो रही है।
इस दौरान विशेषज्ञों ने लाइव डेमो के माध्यम से बताया कि ‘हैंड्स-ओनली सीपीआर’ किसी भी सामान्य व्यक्ति द्वारा भी कैसे किया जा सकता है। प्रतिभागियों को सिखाया गया कि आपात स्थिति में छाती पर प्रति मिनट करीब 100 बार दबाव देना, और ज़रूरत पड़ने पर मुंह से सांस देना कैसे किया जाता है, ताकि मस्तिष्क और अन्य अंगों तक तब तक ऑक्सीजन पहुंचती रहे जब तक पेशेवर चिकित्सा सहायता न मिल जाए।
अवधेश कुमार यादव ने प्रतिभागियों को सीपीआर के सभी चरणों को प्रैक्टिकल मैनिकिन पर करके दिखाया। वहीं, डॉ. मनोज तिवारी, वरिष्ठ परामर्शदाता, एआरटी सेंटर, एसएस हॉस्पिटल, आईएमएस-बीएचयू ने प्रतिभागियों को सीपीआर में तनाव प्रबंधन की भूमिका के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि आपातकालीन स्थितियों में यदि तनाव नियंत्रित नहीं होता, तो व्यक्ति सीपीआर देने में असफल हो सकता है। उन्होंने तनाव नियंत्रण के व्यावहारिक उपायों को भी साझा किया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य अधिक से अधिक लोगों को सीपीआर का प्रशिक्षण देकर उन्हें संभावित जीवन रक्षक बनाना है, ताकि भारत में अस्पताल के बाहर होने वाले कार्डियक अरेस्ट के मामलों में मृत्यु दर को कम किया जा सके।