पंजाब में धान की लिफ्टिंग और डिएएपी (DAP) की कमी के खिलाफ किसानों ने आज (सोमवार) से चार विधानसभा सीटों पर चल रहे उपचुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी (BJP) और आम आदमी पार्टी (AAP) के उम्मीदवारों के घरों के बाहर पक्का मोर्चा लगाने की योजना बनाई है। यह प्रदर्शन किसानों के एकजुट होकर अपनी समस्याओं को उजागर करने का प्रयास है। यह जानकारी भारतीय किसान यूनियन एकता उगराहां के प्रमुख जोगिंदर सिंह उगराहां ने साझा की। उन्होंने सभी किसानों से इस आंदोलन में शामिल होने की अपील की है।
ये प्रदर्शन 13 नवंबर को होने वाले उपचुनाव के संदर्भ में आयोजित किए जा रहे हैं, जिनमें बरनाला, गिद्दड़बाहा, डेरा बाबा नानक और चब्बेवाल शामिल हैं। किसान नेताओं का आरोप है कि धान की लिफ्टिंग और डिएएपी की कमी के मुद्दे के लिए केंद्र और राज्य सरकार दोनों जिम्मेदार हैं। उनका कहना है कि यदि समय पर प्रभावी कदम उठाए गए होते, तो किसानों को आज इन समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता। इस स्थिति के विरोध में किसानों ने सरकारों पर दवाब बनाने का निर्णय लिया है।
पहले भी भारतीय किसान यूनियन एकता उगराहां के बैनर तले भाजपा और आप के नेताओं के घरों के बाहर 18 दिनों तक मोर्चा लगा था, जिसे अब समाप्त करने का निर्णय लिया गया है। इसके स्थान पर कृषि मंडियों में स्थिति का निरीक्षण करने के लिए किसान नेताओं की तैनाती की गई है। इसके अतिरिक्त, संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) भी इन मुद्दों के समाधान के लिए संघर्षरत है और पांच हाईवे किनारे प्रदर्शन कर रहा है।
किसानों द्वारा इस प्रकार के आंदोलनों का रुख पिछले लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिला था, जब उन्होंने भाजपा के उम्मीदवारों का घेराव किया। इस दौरान किसानों ने भाजपा उम्मीदवारों को सवाल पूछने के लिए रोका, जिससे उन्हें चुनाव प्रचार में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। आंकड़ें बताते हैं कि भाजपा ने 13 लोकसभा सीटों में से एक भी सीट नहीं जीती, लेकिन वोट प्रतिशत के मामले में वह तीसरे स्थान पर रही। उसके मुकाबले कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने क्रमशः पहले और दूसरे स्थान पर रहते हुए 26 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त किए।
किसानों का यह आंदोलन प्रदेश में कृषि को लेकर चल रही संकट की स्थिति को दर्शाता है। जहां एक ओर किसान अपनी समस्याओं के समाधान की उम्मीद कर रहे हैं, वहीं राजनीतिक दलों की गतिविधियाँ भी चुनावी माहौल को गर्मा रही हैं। इस प्रकार का आंदोलन यह दर्शाता है कि किसान संगठनों का प्रभावी दखल भी चुनावी राजनीति में महत्वपूर्ण हो सकता है। इस संदर्भ में यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी उपचुनाव पर किसानों का यह संघर्ष कितना परिणामदायक होता है।