राजस्थान में कई जिलों की समाप्ति के निर्णय का होगा दूरगामी लाभ

राजस्थान में कई जिलों की समाप्ति के निर्णय का होगा दूरगामी लाभ

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

राजनीतिक लाभ-हानि से जुड़े निर्णयों को बदलना किसी भी लोकतांत्रिक सरकार के लिए जोखिम से कम नहीं होता। इस तरह के निर्णय में सरकारों को काफी संकोच करना पड़ता है क्योंकि किसी भी निर्णय को बदलते समय राजनीतिक गुणा-भाग देखा जाता है। यही कारण है कि कई निर्णय ऐसे होते हैं जिनके लाख चाहने और प्रशासनिक दृष्टि से सही नहीं होने पर भी सरकारें ढोए जाती हैं। इस मायने में राजस्थान की सरकार की सराहना करनी पड़ेगी कि राजनीतिक दृष्टि से निर्णय लेना मुश्किल व जोखिम भरा होने के बावजूद मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने पूर्व सरकार के समय के जिले बनाने के निर्णय का परीक्षण कर 9 जिले और 3 संभाग समाप्त करने का निर्णय लेने में हिचकिचाहट नहीं दिखाई। अब प्रदेश में 41 जिले और 7 संभाग रह गए हैं। दूदू, केकड़ी, शाहपुरा, नीम का थाना, अनूपगढ़, गंगापुरसिटी, जयपुर ग्रामीण, जोधपुर ग्रामीण और सांचौर जिला और बांसवाड़ा, सीकर और पाली संभाग को समाप्त करने का निर्णय ले लिया।

निश्चित रूप से शुरुआत में इसका विरोध होगा, राजनीति से जुड़े लोगों द्वारा हवा दी जाएगी पर जब कोई दूरगामी जनहित का निर्णय लिया जाता है तो देर-सबेर जनता उसे स्वीकार भी कर लेती है। राज्य सरकार द्वारा यही निर्णय नई सरकार बनते ही लिया जाता तो उसके मायने कुछ अलग होते और उस पर राजनीतिक द्वेष का ठप्पा लगता वह अलग। आज भले विपक्ष द्वारा इस निर्णय पर प्रश्न उठाये जा रहे हों पर सही मायने में देखा जाए तो यह पूरी तरह से प्रशासनिक निर्णय है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने पूर्व सरकार के नए जिले बनाने के निर्णय का परीक्षण करने के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व वरिष्ठ प्रषासनिक अधिकारी डॉ. ललित पंवार की अध्यक्षता में समिति गठित कर परीक्षण करवाया और फिर राजनीतिक स्तर पर मंत्रिमण्डलीय समिति बनाकर सभी पक्षों का अध्ययन कर रिपोर्ट आने पर मंत्रिमण्डल की बैठक में मोहर लगाई गई।

इसी वजह से एक बात साफ हो जानी चाहिए कि यह निर्णय किसी भी मायने में जल्दबाजी या राजनीतिक लाभ के लिए ना होकर पूरी तरह से प्रशासनिक दक्षता के लिए लिया गया है। हालांकि पूर्व सरकार ने नए जिले बनाने के लिए भले प्रशासनिक कमेटी बनाकर रिपोर्ट प्राप्त कर नए जिले बनाने का निर्णय किया पर यह साफ हो जाना चाहिए कि चुनाव नजदीक होने के कारण पूर्व सरकार द्वारा नए जिले बनाने के निर्णय को आमलोगों ने पूरी तरह से राजनीतिक निर्णय के रुप में ही देखा गया।

भजनलाल शर्मा ने पूर्व सरकार द्वारा गठित नए जिलों के गठन का प्रशासनिक दृष्टि से परीक्षण करवाया। इसमें दो राय नहीं कि शुरुआत में इन जिलों और संभागों को समाप्त करने के निर्णय का विरोध हो रहा है पर यह इसलिए अधिक असर नहीं दिखा पाएगा कि आम नागरिक अच्छी तरह से समझता है कि अधिक और छोटे जिले बनने से सरकारी खर्चें बढ़ने के अलावा खास प्राप्त होने वाला नहीं है। नए जिलों के लिए शुरुआती दौर में ही एक जिले के लिए कम से कम एक हजार करोड़ की व्यवस्था करनी होगी। जिला कलक्टर और जिला पुलिस एसपी के दफ्तर तो तत्काल शुरू करने के साथ ही अन्य विभागों के भी दफ्तर जिला स्तर पर खोलने से ही वास्तविक लाभ प्राप्त हो सकता है। अब इसे यों देखा जाए कि इस सबके लिए कितना बड़ा प्रशासनिक अमला तैयार करना होगा, कितनी अधिक आधारभूत सुविधाएं विकसित करनी होगी। सरकारी ऑफिस, सरकारी बंगले और ना जाने कितने ही कार्यों के लिए स्थान और आधारभूत संरचना विकसित करने के साथ ही अधिकारियों-कर्मचारियों की नियुक्ति करनी होगी। इसके साथ ही अन्य सुविधाएं और अन्य सेवाएं अलग होगी।

हमारे सामने पुराने उदाहरण है जब राजसमंद, प्रतापमढ़, दौसा जिले बनाए गए और करौली व प्रतापगढ़ जिले का गठन किया गया। अब सबके सामने है कि इन जिलों को सही मायने में जिलों का आकार लेने में कितना समय लगा। आज भी कई स्थानों पर फिजिबल नहीं होने के कारण जिला सहकारी बैंक नहीं खुल पाएं है तो कई अन्य सरकारी दफ्तर शुरू नहीं हो पाये हैं। दरअसल जन हितकारी सरकार की पहचान लोकहित में दूरगामी परिणामों को देखते हुए निर्णय लेना होता है। लोकतंत्र में बहुत से निर्णय राजनीतिक प्रतिबद्धता के कारण न चाहते हुए भी लेने होते हैं तो कई बार ऐसा भी लगता है कि ऐन केन प्रकारेण सत्ता में बने रहने के लिए इस तरह के निर्णय ले लिए जाते हैं।

प्रशासनिक दक्षता और लोकहितकारी सरकार की पहचान जनहित में कड़वे निर्णय लेने में भी संकोच नहीं करना होता है। सरकार की संवेदनशीलता और प्रशासनिक दक्षता का भी इसी से पता चलता है। खासतौर से राजनीतिक लाभ-हानि से लिए गए निर्णय से अधिक भला नहीं हो पाता है। सरकार की प्रशासनिक और लोकहितकारी होने का इसी से पता चलता है कि वह जनहित में जोखिम भरे निर्णय लेने में भी संकोच ना करें। लोकतंत्र में जनता और जनता का हित बड़ी बात होनी चाहिए क्योंकि सरकार द्वारा निर्णयों का असर दूर तक जाता है। कड़वे निर्णय यदि लोकहित में होते हैं तो जनता ऐसे निर्णयों को हाथोंहाथ लेती है। इसलिए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने सरकार बनने के पहले साल में ही बड़े निर्णय कर सबको चौंका दिया। राजनीतिक लाभ-हानि से परे हटकर मुख्यमंत्री ने 9 जिले और 3 संभाग समाप्त करने का निर्णय व्यापक जनहित में ही देखा जाना चाहिए।

आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि सरकार को अपने प्रशासनिक खर्चों को एक सीमा तक रखना चाहिए। सबकुछ जानते हुए भी होता इसके विपरीत ही है। सरकार राजस्व का अधिकांश खर्चा अपने प्रशासनिक दायित्वों, वेतन-सुविधाओं में ही खर्च कर देती है। वहीं, नए जिले और संभाग बनने से प्रशासनिक खर्च बढ़ना स्वाभाविक है। दूसरी बात यह है कि नए जिले या संभाग बनाने के स्थान पर सरकारों को प्रशासनिक सेवाओं में सुधार और डिलीवरी सिस्टम को मजबूत बनाने पर जोर देना चाहिए। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने राजनीतिक जोखिम लेते हुए प्रशासनिक दृष्टि से सराहनीय निर्णय किया है। इससे मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और उनकी सरकार ने प्रशासनिक दृष्टि से परिपक्वता का परिचय दिया है। हो सकता है कि निर्णय को लेकर विरोध देखने को मिले पर विरोध के खिलाफ भी सरकार को सख्ती दिखानी होगी इससे आमजन में सरकार और सरकार द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों को सराहा ही जाएगा। सरकारों को राजनीतिक लाभ-हानि के साथ व्यापक जनहित को भी ध्यान देना चाहिए और निर्णय लेने में किसी तरह का संकोच नहीं करना चाहिये। आज लोग निर्णय लेने वाली सरकार को पसंद करते हैं न कि निर्णयों को टालने वाली सरकार को। इस मायने से भजनलाल शर्मा के एक साल के कार्यकाल का भी मूल्यांकन किया जाना चाहिए क्योंकि यह सरकार निर्णयों की सरकार बन गई है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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