लुधियाना के हसनपुर गांव के निवासी सूरत सिंह खालसा (92) का हाल ही में अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में निधन हो गया। स्व. खालसा एक प्रमुख नागरिक अधिकार कार्यकर्ता थे, जिन्हें ‘बापू सूरत सिंह खालसा’ के नाम से भी जाना जाता है। उनका जीवन संघर्ष और मानवता के लिए समर्पित था, और वे विशेष रूप से 2015 में सिख कैदियों की रिहाई के लिए किए गए अपने भूख हड़ताल से चर्चा में आए थे। उनका यह आंदोलन लगभग 8 साल तक चला, जिसमें उन्होंने जेल में बंद सिख कैदियों के अधिकारों की रक्षा के लिए अपनी आवाज उठाई।
सूरत सिंह खालसा ने 16 जनवरी 2015 को भूख हड़ताल शुरू की, जिसमें उन्होंने केवल खाद्य पदार्थों का ही नहीं, बल्कि जल का भी सेवन करने से मना कर दिया। उनका मुख्य उद्देश्य था उन सिख कैदियों की रिहाई की मांग करना, जिन्होंने अपनी अदालती सजा पूरी कर ली थी। इस भूख हड़ताल के दौरान उन्होंने केवल सिख कैदियों की रिहाई पर ध्यान नहीं केंद्रित किया, बल्कि उन्होंने सभी धर्मों के उन कैदियों की भी बिना शर्त रिहाई की मांग की, जिन्होंने अपनी सजा पूरी कर ली थी। 11 फरवरी 2015 को, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने अपनी मांगों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया।
स्व. खालसा ने अपने पत्र में दो महत्वपूर्ण बिंदुओं को उजागर किया। पहला, उन्होंने मांग की कि सभी सिख कैदियों को राजनीतिक कैदी माना जाए, जिनमें विचाराधीन कैदी और सिख संघर्ष से संबंधित मामलों में दोषी ठहराए गए व्यक्ति शामिल हों। दूसरा, उन्होंने यह भी कहा कि सभी ऐसे कैदियों को रिहा किया जाना चाहिए जिन्होंने अपनी पूरी सजा पूरी कर ली है, जैसा कि अन्य कैदियों के मामले में होता है। उनकी यह मांगें उस समय के सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण थीं, और उन्होंने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा।
सूरत सिंह खालसा का जन्म 7 मार्च 1933 को हुआ था। वे एक शिक्षित और प्रेरणादायक शख्सियत थे, जिन्होंने अपने जीवन का अधिकतर हिस्सा सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के लिए लड़ते हुए बिताया। 1988 में, वे अपने बच्चों के साथ अमेरिका चले गए, लेकिन इसके बावजूद वे नियमित रूप से पंजाब आते रहते थे। उनके परिवार में पांच बेटे और एक बेटी हैं, जो सभी अमेरिकी नागरिक हैं। खालसा खुद भी अमेरिकी नागरिक बनने के बावजूद अपनी जड़ों से जुड़े रहे और अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाते रहे।
एक सरकारी शिक्षक के रूप में उनके करियर ने उन्हें एक मजबूत आधार दिया, लेकिन ऑपरेशन ब्लूस्टार के विरोध में उन्होंने जून 1984 में अपनी नौकरी छोड़ दी। उनका जीवन और संघर्ष हमें प्रेरणा देते हैं कि हमें मानवता के लिए लड़ने का साहस हमेशा बनाए रखना चाहिए। उनके साथ बिताए गए समय और उनके कार्यों की स्मृति हमेशा उनके परिजनों और उनके समर्थकों के दिल में जीवित रहेगी।