राजस्थान हाईकोर्ट की सख्ती: IAS अधिकारियों से जवाबदेही, किसी ने मांगी माफी, कोई सुप्रीम कोर्ट पहुँचा

राजस्थान की राज्य सेवाओं में कार्यरत अधिकारियों के लिए हाल के दिनों में न्यायालय के मामलों में लापरवाही के आरोपों ने एक नई बहस को जन्म दिया है। हाल ही में, दो वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों, प्रवीण गुप्ता और भास्कर ए सावंत, को कोर्ट आदेशों की अनदेखी के चलते सजा सुनाई गई थी। इन मामलों ने न केवल राज्य की प्रशासनिक मशीनरी की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं, बल्कि यह भी स्पष्ट किया है कि क्यों उच्च स्तर के अधिकारियों को बार-बार न्यायालय की अप्रिय स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है।

आईएएस प्रवीण गुप्ता को अवमानना के कारण तीन महीने की सजा सुनाई गई, जब उन्होंने जयपुर की कॉमर्शियल कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं किया। उन्हें 167 करोड़ रुपये के बकाया भुगतान के संबंध में शपथ-पत्र नहीं देने के चलते सजा दी गई। जबकि, भास्कर ए सावंत पर 31 करोड़ रुपये के भुगतान में देरी के मामले में ऐसा ही निर्णय लिया गया। हालांकि, दोनों आईएएस अधिकारियों ने हाईकोर्ट से राहत की गुहार लगाई है, जिसके चलते उनकी सजा पर रोक लगा दी गई है, लेकिन मामला साफ दिखता है कि दोनों अधिकारियों की कार्यशैली में गंभीर लापरवाही बरती गई है।

राजस्थान हाईकोर्ट ने अब आईएएस भवानी सिंह देथा और शुचि त्यागी को भी तलब किया है। इन अधिकारियों पर कोर्ट के आदेशों का पालन न करने की गंभीरता से संज्ञान लिया गया है। अदालत ने तर्क दिया है कि इस प्रकार की अल्पज्ञानी प्रवृत्ति न केवल न्यायालय की गरिमा को प्रभावित करती है, बल्कि न्यायप्रणाली में लोगों का विश्वास भी कमजोर करती है। गौरतलब है कि इन अधिकारियों के विरुद्ध न्यायालय में दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई की जा रही है, जिसमें सेवा लाभ के मुद्दे पर कोर्ट के आदेशों की अवहेलना की गई थी।

हालांकि, जैसलमेर के कलेक्टर प्रताप सिंह चौहान को इस विवाद में राहत प्रदान की गई है। उन्हें अवमानना के मामले से मुक्त कर दिया गया क्योंकि उन्होंने माफी मांगी थी। इससे यह जाहिर होता है कि अदालतों की कार्यप्रणाली में एक ऐसे दायरे का निर्माण हुआ है, जहां लापरवाही के मामलों में सख्ती और दंड का प्रावधान है, लेकिन माफी मांगने पर राहत भी दी जा सकती है।

अंततः, राजस्थान की ब्यूरोक्रेसी में न्यायालयों के प्रति सम्मान और आदेशों का पालन करने की आवश्यकता स्पष्ट हो रही है। बाहर से देखने पर यह समझ में आता है कि यदि उच्च स्तर के अधिकारी न्यायालय के निर्देशों का पालन नहीं करेंगे तो इसका परिणाम न केवल उनके लिए बल्कि सम्पूर्ण प्रशासनिक तंत्र के लिए दुखदायी हो सकता है। यह घटनाएं इस बात की ओर संकेत कर रही हैं कि निरंतरता के साथ अधिकारियों को अपनी जिम्मेदारियों का सही पालन करना चाहिए, ताकि न्यायालय और लोगों के बीच विश्वास का पुल बना रहे।