राजस्थान की राजनीतिक यात्रा की शुरुआत 30 मार्च 1949 को जयपुर के सिटी पैलेस में हुई, जब नए राज्य का उद्घाटन समारोह आयोजित किया गया। यह समारोह एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना थी, लेकिन इसका शुरुआती चरण हलचल से भरा रहा। कांग्रेस पार्टी के भीतर की दरारें इस समारोह में स्पष्ट रूप से नजर आईं। हीरालाल शास्त्री को पहले मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया, जिससे कई प्रमुख कांग्रेसी नेता नाराज हो गए। नाराजगी का स्तर इतना बढ़ गया कि पार्टी ने उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया। शास्त्री ने भी इन विरोधियों के खिलाफ कानूनी कदम उठाए।
राजस्थान का उद्घाटन समारोह कांग्रेस नेताओं के लिए एक अपमानजनक अनुभव बन गया। समारोह में वरिष्ठ नेताओं जैसे माणिक्यलाल वर्मा और जयनारायण व्यास को पिछली कतार में बैठने के लिए मजबूर किया गया, जबकि प्रतिष्ठित व्यक्तियों के लिए पहली कतार में जगह निर्धारित थी। इस बात को इन नेताओं ने न केवल व्यक्तिगत अपमान समझा, बल्कि इसे पार्टी में बढ़ती विभाजन की ओर भी इशारा माना। माणिक्यलाल वर्मा ने अपनी डायरी में इस घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने इस अपमान के चलते समारोह को छोड़ दिया।
राजनीतिक रेलमपेल के बीच, हीरालाल शास्त्री ने इस स्थिति का सामना किया। अपनी आत्मकथा में उन्होंने स्वीकार किया कि समारोह की व्यवस्था में कुछ गड़बड़ी हो गई थी। इसके बाद, कांग्रेस पार्टी के दिग्गजों में कटुता बढ़ती गई, जिसने अंततः शास्त्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की राह प्रशस्त की। 13 जून, 1949 को सरदार पटेल ने जयनारायण व्यास को संदेश भेजकर स्थिति के प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त की और शास्त्री की कार्यशैली की आलोचना की। यह स्पष्ट था कि शास्त्री ने प्रधानमंत्री पद का जिम्मा उचित तरीके से नहीं संभाला था।
कांग्रेस कमेटी ने अंततः शास्त्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास कर दिया, जिसके बाद शास्त्री ने पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं पर मुकदमा दायर किया। राज्य सरकार ने विशेष अध्यादेश जारी किया, जिससे आरोपियों पर अपने आप को निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी डाली गई। हालांकि, 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के बाद हाईकोर्ट ने इस कार्यवाही को रोकने का आदेश दिया। शास्त्री ने अपनी आत्मकथा में यह माना कि इस विवाद ने उनके लिए कई चुनौतियों को जन्म दिया।
दिसंबर 1950 में सरदार पटेल के निधन के बाद, 5 जनवरी 1951 को हीरालाल शास्त्री को मुख्यमंत्री के पद से हटा दिया गया और उनके स्थान पर सीएस वेंकटाचारी को कार्यकारी मुख्यमंत्री बनाया गया। उनकी यह अनियोजित विदाई उस समय के राजनीतिक परिदृश्य में एक कड़वा मोड़ साबित हुई। हालांकि, यह घटनाक्रम केवल एक क्षेत्र के राजनीतिक इतिहास का ब्योरा नहीं बल्कि उस समय की कांग्रेस पार्टी के भीतर गहराते विवादों और विरोधों का भी प्रतीक है, जिसने राजस्थान की राजनीतिक स्थिति को प्रभावित किया।
राजस्थान की कहानी न केवल सरकार की गठन की प्रक्रिया को दर्शाती है, बल्कि राजनीतिक नेतृत्व की चुनौतियों और उनकी आंतरिक फूट को भी उजागर करती है। यह राज्य भर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की विरासत और उनकी संघर्षों की गवाही देता है, जो अब तक की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं।