सभी समस्याओं का समाधान हैं श्रीराम : गिरीश पति त्रिपाठी

अयोध्या, 24 दिसंबर (हि.स.)। हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषी न्यूज एजेंसी के तत्वावधान में आयोजित अयोध्या उत्सव के दूसरे दिन के दूसरे सत्र को रविवार को संबोधित करते हुए अयोध्या के महापौर गिरीश पति त्रिपाठी ने कहा कि भगवान राम के चरित्र प्रभाव की व्यापकता की चर्चा करना असंभव है। केवल सरयू तट के किनारे जाने से ही भगवान की प्राप्ति हो जाती है। श्रीराम सभी समस्याओं का समाधान हैं।

त्रिपाठी ने श्री मणिराम दास छावनी स्थित श्रीराम सत्संग भवन में आयोजित ‘अयोध्या उत्सव’ में कहा कि किसी भी वांग्मय में भगवान राम की महत्ता बहुत ही विस्तृत है। संक्षेप में कह पाना कठिन है, लेकिन इनका सबसे महत्वपूर्ण कार्य है कि उसका एक-एक अक्षर ही महापाप को नाश करने में सक्षम है। उनके चरित्र का एक भी शब्द और अक्षर मनोभावों के तमाम पापों को नष्ट करने में सक्षम और समर्थ है।

अयोध्या की महत्ता को बताते हुए त्रिपाठी ने कहा कि लोक में राम की क्या बात करें। अयोध्या आइये, सरयू के किनारे जाइए। आपको भगवान श्रीराम सहज ही प्राप्त हो जाएंगे। सभी समस्याओं का नाश हो जाएगा, लेकिन यह तार्किक मन नहीं मानता है। बावजूद इसके यह अनुभव सिद्ध है। पढ़ाई के दौरान मुझे भी लगता था कि बिना प्रयास के ही, सरयू के किनारे जाने मात्र से ऐसा होना कैसे संभव है? इस बात को हृदय सहज ही स्वीकार नहीं करता है। सवाल उठता था कि यह कैसे संभव है कि सरयू नदी के दर्शन मात्र से भगवान के दर्शन हो जाएंगे। धीरे-धीरे अनुभव हुआ और भ्रांति भी टूटी। यह सही है कि अयोध्या की भाषा, गलियों में राम-राम व्याप्त हैं। इन सबसे ऊपर समस्त प्राणियों के हृदय में राम निवास करते हैं। हम सबके लिए श्रीराम, सिर्फ हमारे आराध्य नहीं हैं, वे हमारे सांस्कृतिक आदर्श हैं। राम, हमारे मर्यादा के सर्वोच्च शिखर हैं। राम हमारे लिए आचरण का सर्वोच्च प्रतिमान हैं। आचरण के सर्वोच्च बिंदु हैं। राम हमारे अस्तित्व से ऊपर हैं। वे हमारे रोम-रोम से जुड़े हैं। अयोध्या का व्यक्ति, अयोध्या से बाहर कहीं भी चला जाएगा तो उसको राम से जोड़कर ही देखा जाएगा।

उन्होंने कहा कि यहां की लोक संस्कृति, यहां तक कि लोगों के रोम-रोम में राम बसते हैं। अभिवादन में राम-राम करते हैं। अंतिम यात्रा में राम नाम सत्य पुकारते हैं। राम, लोक संस्कृति में इस तरह से व्याप्त हो गए हैं कि जाने अनजाने यहां पर निपट गंवई लोग (जो शास्त्र और परंपराओं से परिचित नहीं हैं) अपनी तमाम परिस्थितियों की अभिव्यक्ति में भगवान के नाम का मनुहार करते हैं।