याचिका में अधिवक्ता विजय पाठक ने बताया कि प्रार्थी के खिलाफ विभाग ने अनुशासनात्मक कार्रवाई के चलते चार्जशीट जारी की। उसे 22 जुलाई 1996 से 13 मई 1997 तक निलंबित रखा गया। वहीं जांच के दौरान 17 जून 2000 को राजस्थान सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1996 की धारा 53(1) के तहत उसे अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई। वहीं बाद में विभागीय जांच बंद कर दी गई और प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने प्रमाणपत्र जारी कर दिया कि उसके खिलाफ कोई जांच लंबित नहीं है, लेकिन फिर भी राज्य सरकार ने 10 अप्रैल 2006 के आदेश से उसे केवल निर्वाह भत्ता देने की बात कही और बाकी वेतन व लाभ रोक दिए। इसे हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए कहा कि जब प्रार्थी के खिलाफ चार्जाशीट वापस ले ली है तो इस स्थिति में सरकार के पास निलंबित अवधि का वेतन रोकने का कोई अधिकार नहीं था। इसके विरोध में राज्य सरकार ने कहा कि उसे अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी थी, इसलिए वे वेतन व परिलाभ प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है।