धुनुची नृत्य दुर्गा पूजा के दौरान भक्तों, मुख्यतः बंगाली हिंदुओं द्वारा किया जाता है। यह नृत्य देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय के जश्न के रूप में मनाया जाता है, जिसमें विजय और सशक्तिकरण के विषय शामिल होते हैं। धुनुची नृत्य दुर्गा पूजा से गहराई से जुड़ा हुआ है और पारंपरिक रूप से यह महिलाओं द्वारा किया जाता है। यह नृत्य आमतौर पर दुर्गा पूजा के अंतिम दिनों में, विशेष रूप से अष्टमी और दशमी के बीच किया जाता है। धुनुची नृत्य करते समय पुरुष और महिलाएं दोनों ही आमतौर पर पारंपरिक बंगाली परिधान पहनते हैं। महिलाओं के लिए पारंपरिक नृत्य-संबंधी पोषाक गरद साड़ी रहती है , जिसे बंगाली हिंदू महिलाएं पूजा या पवित्र धार्मिक समारोहों के दौरान पहनती हैं। तो वहीं पुरुषों के लिए धोती और कुर्ता, धोती सफेद या रंगीन हो सकती है ।धुनुची नृत्य मुख्यतः वाद्य यंत्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है, इसमें गीत की आवश्यकता नहीं होती। मुख्य वाद्य यंत्र ढाक है, जो एक पारंपरिक बंगाली वाद्य यंत्र है। इसके अलावा कंसोर और घंटा भी बजाया जाता है। दोनों वाद्य यंत्र तेज़ और भारी ध्वनि उत्पन्न करते हैं। नर्तक इन तेज़ ध्वनियों से उत्पन्न लय पर नृत्य करते हैं। रायगढ़ के मिलनी क्लब कालीबाड़ी और रेलवे स्टेशन काली मंदिर में हर साल आयोजित होने वाले नवरात्रि और दुर्गा पूजा के दौरान भी बंगाली पूजा की यह संस्कृति यहां देखने को मिलती है। धुनुची नृत्य नवरात्रि के दौरान लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र भी बनती है।
स्टेशन कॉलोनी में दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे कर्मचारियों के दुर्गा पूजा पांडाल में जब श्रीमती शोमा दास ने दोनों हाथ में धुनुची लिए हुए आस्था की ऊर्जा से भरा ढाक की ताल पर जब अद्भुत धुनुची नृत्य किया तो देखने वाले उसे एकटक होकर देखते रह गए।